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________________ मरु- गुर्जर जैन साहित्य ४१९ में उपाध्याय पदवी प्राप्त की । आप सागरचन्द्रसूरि की परम्परा में महिमराज, दयासागर, ज्ञानमन्दिर के शिष्य थे । आपके जन्म से सम्बन्धित यह पंक्ति देखिये : 'पनरह सइ तेत्रीसइ वरस, तसु घरि जम्मा गुणह निवास' इसी तरह स्वर्गवास सम्बन्धी यह पंक्ति भी उल्लेखनीय है :सं० (१६०३) 'ईस नयण नभं रस ससि वरस, सेय पंचमी मिगसर भास | 2 इसका भी ऐतिहासिक महत्त्व है । इनकी दोनों रचनायें दो जैनाचार्यो के इतिवृत्त पर आधारित हैं और उनके सम्बन्ध में आवश्यक सूचनायें इनमें उपलब्ध हैं अतः इनका ऐतिहासिक महत्त्व तो है ही, साथ ही आपके कई स्तवन आदि भक्ति साहित्य के अच्छे नमूने हैं । आपकी भाषा सरल प्रवाहपूर्ण मरुगुर्जर है । देवतिलकोपाध्यायची० का प्रथम छंद आगे उद्धृत किया जा रहा है : 'पास जिणेसर पय नमु निरुपम कमलानन्द, 2 सुगुरु थुणता पामियइ, अविहण सुख आणंद ।" भाषा के उदाहरण स्वरूप इसका एक छन्द और दिया जा रहा है :'ऐ चउपइ सदा जे गुणइ, उठि प्रभाति सुगुरु गुण थुणइ, कहइ पद्ममन्दिर मन शुद्धि, तसु थाये सुख सम्पति रिद्धि | 2 इसकी भाषा पर राजस्थानी और हिन्दी का प्रभाव परिलक्षित होता है । पद्मसागर - आप मम्माहडगच्छ के मुनि (मति) सुन्दरसूरि के शिष्य थे आपने सं० १५६३ भाद्रपद वदी ८ रविवार को ' कयवन्ना चौपइ' लिखी । यह कृति दान के माहात्म्य पर लिखी गई है । आपकी दूसरी रचना 'स्थूलभद्र अठावीसो' स्थूलभद्र के जीवनचरित्र पर आधारित है। श्री देसाई ने 'लीलावती सुमतिविलास' नामक एक अन्य रचना की भी सूचना दी है, लेकिन इसके लेखक कडवागच्छ के मूलपुरुष 'कडवा' कहे जाते हैं" । कयवन्नाचौपइ का आरम्भ इस प्रकार हुआ है : 'सरस वचन आपे सदा, सरसति कवियण माइ, पणमवि कइवन्ना चरी, पणमिसु सुगुरु पसाय । मम्माहड गर्छ े गुणनिलो श्री मुनिसुन्दर सूरि पद्मसागर सूरि सीस तसु पभणे आणंद पूरि ।' -: १. ऐ० जे० काव्य संग्रह पृ० ५५ २. देसाई – जै० गु० क०, भाग ३, पृ० ५३८ ३. वही भाग १, पृ० १११ For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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