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मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
कवि की भाषा सरल मरुगुर्जर है। कवि को काव्य तत्त्वों की परख है और कहीं-कहीं उनका अच्छा प्रयोग किया है। चरित्र-चित्रण उपदेश और मनोरंजन तथा काव्य सौष्ठव एवं भाषा-शक्ति की दृष्टि से विचार करने पर यह एक श्रेष्ठ कृति प्रतीत होती है।
पद्मनाभ-आप चित्तौड़ के रहने वाले राजस्थानी विद्वान थे। आपने सं० १५४३ में संधपति डूंगर के आग्रह पर ५६ छप्पयों में बावनी या डूंगर बावनी नामक कृति की रचना की। इसकी भाषा राजस्थानी प्रधान मरुगुर्जर है। रचना उच्च स्तर की है।
पद्ममन्दिर गणि-आप खरतरगच्छीय कीर्तिरत्नसूरि के शिष्य गुणरत्नसूरि के शिष्य थे। आपने अपने गुरु गुणरत्नसरि के सम्बन्ध में सम्वत् १५४६ में 'गुणरत्नसूरिविवाहलउ' ( ४९ पद्य ) लिखा। आपने सं० १५४३ में 'जालोरनवफणापाश्वंदसभवस्तवन' (गा० ३५ ) और वरकाणा-पार्श्वस्तोत्र ( गा २० ) नामक स्तवन स्तोत्र भी लिखा है। इनके अतिरिक्त आपने देवतिलकोपाध्यायची० ( गा० १५ ) भी लिखी है जो ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह, पृ० ५५ पर प्रकाशित है।
'गुणरत्नसूरिविवाहलउ' के नायक गुणरत्नसूरि के सम्बन्ध में विवाहलउ से पता चलता है कि वे मारवाड़ के समियाणा ग्राम निवासी नाहटा थे। इसकी प्रारम्भिक पंक्तियाँ इस प्रकार हैं :
'मंगल कमल विलास दिवायरं सायर संति पायारविदं, पणमिय अमिय गुण रयण रयणायर, राय रंकाण आणंद चंद । इक्क महनाण लोयण तणउ दायगो, नायको अनइ संजम सिरिए,
सुवन कटोरडी सोहग उरडी, जगि करइ दूध साकर भरिए । इसकी अन्तिम पंक्तियाँ देखिये :
"एह सिरि गुणरयण सूरि विवाहलउ. पद्ममंदिर गणि तासु सीस,
पभणउ भवियण अनुदिन, जेम पामउं सुहं सुह जगीस ।४९।" देवतिलकोपाध्यायचौ० के अनुसार देवतिलक अयोध्या के बाहडगिरि नामक स्थान के निवासी, ओसवालवंशीय, भणशालीगोत्रीय शाह करम. चंद और उनकी पत्नी सुहाणा के पुत्र थे। आपके बचपन का नाम देदो था। आपने ८ वर्ष की अवस्था में सं० १५४१ में दीक्षा ली और सं० १५६२ १. श्री अ० च० नाहटा-परम्परा पृ० ६१ २. वही जै० म० गु० क०-१० १३०
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