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मरु - गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
नरशेखर - आप पिप्पलकगच्छीय श्री गुणसागरसूरि के शिष्य श्री शान्तिसूरि के शिष्य थे । अपनी रचना 'पार्श्वनाथपत्नीप्रभावतीहरण" में कवि ने गुरुपरम्परा का इस प्रकार उल्लेख किया है :
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'गुणसागर सूरि शान्ति सूरि गुरु, गोअम सामि नई तोलइरे, करजोडी शिष्य तेहनइ रे नरशेखर इम बोलइ रे ।
प्रारम्भ में सरस्वती की वंदना है । भाषा के नमूने के लिए दो छंद दिए. जा रहे हैं
'सरस वयण सरसति मति आपउ, थापउ भगत जन थिर करी अ हरिहर ब्रह्ममंडल तुम्ह गाइओ, ध्याइ ध्यान मनि धरी ।
पार्श्व की पत्नी प्रभावती का वर्णन इन पंक्तियों में द्रष्टव्य है :'पासकुमार प्रभावती रंगि रमई सविचार रे, नितुनितु नवनव नेहलउ, नाहलउ निरखइ नारि रे, मोहन मुरति जोइ रे । ६६ । '
प्रभावती हरण अ जे भणई, भणई गुणइं नर नारि, नवनिधि हुई तेह तइ, सुख सधलां संसारि रे मोहन । ६७ ।
यह एक प्रकार का विवाहलो गीत है । इसकी शैली में गेयता तथा भाषा में सरलता उल्लेखनीय है ।
न्यायसुन्दर उपाध्याय - आप खरतरगच्छीय आचार्य जिनवर्द्धनसूरि के शिष्य थे । आपने सं० १५१६ में 'विद्याविलासनरेन्द्रचउपइ' लिखी । रचना तिथि का उल्लेख निम्न पंक्तियों में किया गया है-
'श्री न्याय सुन्दर उवझाय, नरवर किध प्रबंधा सुभाय, संवत पनर सोल वरसंमि, संघ वेयण अविहिय सुराम । "
गुरुस्मरण - इणिपरि (एम?) उपाली आउ, देवलोक पहुतउनरराउ,
खरतरगच्छ जिनवर्धन सूरि, तातु सीस बहु आणंदपूरि ।' अन्त-विद्याविलास नरिंद चरित, भवय लोय कहू अवे पवित्र, जे नर पढ़इ सुणइ साभंलइ, पुण्य प्रभाव मनोरथ फलइ । '
१. श्री मो० द० देसाई - जैन गु० क० भाग ३ पृ० ६३९ २. वही, भाग १ पृ० ५१
३. वही
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