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मरु-गुर्जर जैन साहित्य या 'मोहिया दानव देवता, नर मोहिया संसारि,
नारी महियल मोहिनी, कहइ नरपति सुविचार ।" नारी प्रशंसा की कुछ पंक्तियां देखिये :
'नारी विण दिहाडो किसो ? कहु किमरयण विहाइ ? अति खाधा सविरुयडां, स्त्री सयवडी न थाइ। नारायण नारी वडइ, कीधो दैत्य सिंहार,
कहइ नरपति खापडा नारी त्रिभोवन सार।। नरपति की ही रचना विक्रमादित्य चुपइ भी हो सकती है किन्तु रचनाकाल शक सं० १५१४ दिया गया है, यथा
'भाद्रव वदि आरंभीउ, वीजा अनइ बुद्धवार,
संवत साके पंनरह, दस चिहूं चिहूं अधिकार । इस रचना का कवि भी जनेतर कहा गया है और इसमें भी मंगलाचरण लम्बोदर की वंदना से प्रारम्भ हुआ है, यथा
'लंबोदर तुझ वीन, सुन्डाला समरथ, सिधि वूधि वर चलणे नम सीझवि जे सब अरथ ।
अतः काफी संभावना हैं कि यह नरपति भी नंदवत्रीसीकार नरपति ही हों। यदि रचनाकाल शकसंवत् के स्थान पर विक्रम संवत् १५१४ हो तो यह तिथि नंदवत्रीसी की रचना तिथि सं० १५४५ से अधिक पहले भी नहीं है
और दोनों लेखक एक ही व्यक्ति हो सकते हैं । श्रीदेसाई जी का अनुमान कि 'विक्रमादित्य चु०' का लेखक जैन कवि है क्योंकि पंचदण्ड छत्र पंच आदेश के द्वितीय आदेश में उसने आदीश्वर के वंदन-पूजन का वर्णन किया है, यथा
'आगीआनु मोटइ उपाय, राजा जिहाँ चिंतइ तिहां जाइ, नगर सोपारइ पुहता थया, आदीश्वर नइ देहरइ गया । देहरु अछइ तेह चउमुख, दरिशन दीणइ नासइ दुक्ख, आदिश्वरनी पूजा करी, राज वइठउ आसन धरी।
यदि यह भिन्न कवि है और जैन कवि हैं तथा इनका रचनाकाल सं० १६४९ है ( १७वीं शताब्दी ) तो इसका विवरण आगे होना चाहिए। १. श्री मो० द० देसाई-जै० गु० क० भाग ३ खण्ड २, पृ० २१३८-२११५ २. वही, भाग १ पृ० २९३
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