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मरु-गुर्जर जैन साहित्य
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थंभण पास पासउलउ रचिउ उछाहि । गज सुकुमाल चरित्र अ, जे गाइ रंगि,
तीह घरि नवनिधि संपजइ सुषविलसइ अंगि।"1 'दशश्रावकबत्तीसी' के सम्बन्ध में कवि ने सूचित किया है :-~
'वत्रीसी दश श्रावक तणी चित्रकूट रची धरमह भणी,
पनर त्रिपनइ आणंदपूरि, कोरंटगच्छ पभणइ नन्न सूरि । पंचतीर्थस्तवन में सेत्रुज, दहीउद्रापुर, उजलगिरि, खंभायतपुर और साचुरि की मूर्तियों का स्तवन किया गया है, यथा :
'पांचइ तिरथ पंच जिणेसरु, पंचमी गति पुहता सुदंस ।
नन्न सूरि इम छंदे नव नवे, वीनव्या सुखदायक ते सवे ।" आपकी कुछ छोटी रचनाओं की सूची इस प्रकार है :
शांतिनाथ स्व० सं० १५४३, अर्बुदचैत्यप्रवाडी सं० १५५४, मिच्छादुक्कड़सज्झाय सं० १५५९, महावीरसत्तावीसभव सं० १५६०, जीराउला पार्वछंद', प्रभातीगीत, २४ जिनगीत, जीवदयागीत, पुण्यकरणीयस्थापना गीत, गौतमस्वामीगीत । इन छोटी कृतियों का एक संकलन पं० लालचन्द ने किया है। छोटी रचनाओं की भाषा-शैली के प्रतिनिधि रूप में 'अर्बुद चैत्यप्रवाडी' की दो पंक्तियां प्रस्तुत की जा रही हैं :
'इणिपरि अरबुद चैत्र प्रवाडि जि, कीजइ आणंद पूरि, पनर चउपनइ भणइ मनरंगइ, कोरंट गछि ननसरि ।
यह रचना जैनयुग पुस्तक ५, पृ० ४४४ पर प्रकाशित है। इसके आधार पर यह निर्विवाद रूप से कहा जा सकता है कि नन्नसरि एक उत्तम रचनाकार थे। आप की काव्य भाषा मरुगुर्जर में सहज प्रवाह एवं प्रसाद. गुण प्राप्त होता है।
प्रायः जैन कवि उपदेश परक रचनाओं को रुचिकर बनाने के लिए कथा का आधार लेते हैं किन्तु इन्होंने अपनी अधिकतर रचनाओं में कथा का आधार नहीं लिया है बल्कि विचारप्रधान रचनाओं को सुन्दर भाषा शैली के १. श्री मो० ८० देसाई--जै० गु० क० भाग १, पृ० ९६
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