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________________ ४१२ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास सं० १५५२ में 'गजसुकुमालचोढालिया' ( खंभात ), सं० १५५३ में 'दश श्रावकबत्तीसी (चित्तौड़ ) के अतिरिक्त पंचतीर्थस्तवन और अनेक संझाय, गीत तथा भास आदि छोटी-छोटी रचनायें भी लिखीं । 'विचारचौसठी' के अन्त में निम्न विवरण प्राप्त होता है 'इणीपरि श्रावक धर्म तत्त्व, पनर चुआलि रचू पवित्र ।" अर्थात् इस रचना में श्रावक धर्म का तत्त्व बताया गया है और यह सं० - १५४४ में रची गई है। आगे कवि कहता है 'सुललित चोसठि चोपइ बन्ध, मिच्छा टुक्कड़ होवे असुध । अहने नाम विचार चोसठी, रुष श्रेणि करे अकठि । खंभनयर आनन्दपूरी, कोरंट गछ पभणे नन्नसूरी इस छंद में रचना स्थान, लेखक का नाम और गच्छ सम्बन्धी सूचना में दी गई हैं । श्री मो० द० देसाई ने विचारचौसठी की अन्य प्रति के आधार पर ६३ वीं ६४ वीं कड़ी का पाठान्तर दिखाया है । गजसुकुमार संझाय का रचना काल पहले सं० १५४८ और बाद में सुधारकर सं 1५५८ बताया है । नाहटा जी ने 'गजसुकुमारचौढालिया' नामक रचना का उल्लेख किया है और रचना काल सं० १५५१ बताया है। पता नहीं दोनों एक ही रचनायें हैं या दो; क्योंकि श्री नाहटा जी ने चौढालिया का पाठ नहीं दिया है। गजसुकुमारराजर्षिसज्झाय का प्रारम्भ इस प्रकार हुआ है'सोरठ देश वषाणीय साहेलडी रे देवह तणउनिवेस, द्वारिका नयरी तिहां भली, समरथ कृष्ण नरेश । समरथ कृष्ण नरेश भुजबल, जसुपिता वसुदेव, देवकी देवी ऊपरिधरिया, करइ सानिधि देव ' " - अन्त में रचना काल का उल्लेख इस प्रकार किया गया है : 'श्री कोरंटगछ राजीउ, श्री सावदेव सूरि तासु सीस नन्नसूरि भणइ, मन आणंद पूरि तिणिपरिपनर अठावनइ, भाइत मांहि, १. श्री मो० द० देसाई - जे० गु० क० भाग १, पृ० ९६ २. वही भाग ३ पृ० ५२५ ३. वही भाग १, पृ० ९६ Jain Education International For Private & Personal Use Only '— www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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