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________________ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास अवन्तिसुकुमालसज्झाय का अन्तिम ३३वां पद्य प्रस्तुत है 'अम चलइ रोम न पदो लागी करिय बैठो नृप भणइ, प्रभ दोष खामु सीस नामु इन्द्र संकट जिम रलइ । कल्याण मंदिर स्तवन करता विहार पीडी अप्प ओ, कवि कहइ धरमसमुद्र वाचक पास पगल्या थाय ओ ।" ४१० सुदर्शनरास में सुदर्शन सेठ के शील का माहात्म्य बताया गया है । इस चौ० में यह चरित्र संक्षिप्त किन्तु प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया गया है । रात्रिभोजनरास और कुलध्वजकुमाररास में इनके वक्तव्य अधिक प्रभावशाली बन पड़े हैं और इनके उपदेशक व्यक्तित्व का अच्छा प्रभाव पड़ता है । कवि का उद्देश्य धार्मिक संदेश देना है, काव्य तो उसका साधन है । सुदर्शन चौ० की अन्तिम पंक्तियाँ देखिये : 'इम सेठि सुदरसन चरिय, घणा पुण्य प्रभावई भरिम, जे नरनारी नी रागी गाई, तिहि ऋद्धिवृद्धि नितु थाइ । सुदरसन नउ नाम मन वंछित पूरइ काम । अति सबल सील अभिराम मनि ध्याई करउ प्रणाम । 2 उक्त विवरणों और उद्धरणों से यह स्पष्ट है कि ये मरुगुर्जर भाषा के एक महत्वपूर्ण जैन कवि हैं । धर्मसागर - आप संडेरगच्छीय ईश्वरसूरि के शिष्य थे । आपकी 'आरामनन्दनचौपाइ' सं० १५८७ रचना की है । यह सूचना देसाई जी ने जैन साहित्यनो इतिहास पृ० ५२७ पर दिया है किन्तु जैन गु० क० तीन में उन्होंने अपने कथन का संशोधन करके इसे धर्मसागर के शिष्य चउहथ या चौथों की रचना बताया है । आरामनन्दन चउयइ में चउहथ का स्पष्ट रूप से नाम है, यथा भाग 'हरष धरी घणइ अ, चउहथ इम भणइ ओ ।' अतः 'चउहथ' कवि के साथ इस कृति का विवरण दिया जा चुका है । ब्रह्मधर्मसागर नामक एक अन्य कवि १८ वीं शती में हुए हैं जिनका विवरण यथा स्थान दिया जायेगा। विवेच्य धर्मसागर की अन्य कोई कृति उपलब्ध नहीं है, अतः इनके विवरण की अपेक्षा नहीं है । १. श्री मो० द० देसाई - जै० गु० क० भाग १, पृ० ११८ २. श्री अ० च० नाहटा - जै० म० गु० कवि पृ० ० १४२ ३. श्री मो० द० देसाई – जै० गु० कवि भाग ३ पृ० ५७८ For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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