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________________ ४०८ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास इसकी अनेक क्रियायें पुरानी हिन्दी की हैं, जैसे लेना, कियो आदि । इसमें गुजराती प्रभावित राजस्थानी भाषा का प्रयोग हुआ है अर्थात् सब मिलाकर यह मरुगुर्जर की प्रतिनिधि रचना है। भाषा के उदाहरण स्वरूप निम्न पक्तियाँ अवलोकनीय हैं : 'ते देखी भयभीत हवी, नाग श्री कहे तात, कवण पातिग एणे कीया, परिपरि पामइ छेघात । तब ब्राह्मण कहे सुन्दरी सुणो तम्हे एणी बात । जिम आनंद बहु ऊपजे जग माहे छे विख्यात ।" वाचक धर्मसमुद्र ---आप खरतरगच्छ (पिप्पलकशाखा) की पट्ट परम्परा में जिनसागरसूरि, जिनहर्षसूरि एवं जिनचन्दसूरि के शिष्य श्री विवेक सिंह के शिष्य थे। आपने सं० १५६७ में दानधर्म के माहात्म्य पर सुमित्रकुमाररास लिखा । इसमें ३३७ पद्य हैं। इन्होंने सं० १५८४ में स्वदारासंतोष व्रत पालन की प्रेरणा देने वाला 'कूलध्वजकूमार रास' लिखा। यह १४३ पद्यों की रचना है। रात्रि भोजन के दोष दर्शनार्थ इन्होंने जयसेन चौ० ( रात्रिभोजन रास ) पंचालसा में लिखा। सं० १५७३ में आपने श्रीमल साह के आग्रह पर अजिलाणापुर में एक कल्पित कथा पर आधारित रचना प्रभाकरगुणाकर चौपाइ ( ५३० पद्य ) लिखी थी। शकुंतला की कथा को स्पर्श करने वाली आपकी एक रचना 'शकुन्तलारास' (१०४ पद्य ) जैनसाहित्यसंशोधक, खण्ड ३ में प्रकाशित हो चुकी है। आपकी अन्य रचनाओं में सुदर्शनरास ( १०७ पद्य ) और अवन्तिसुकुमालसंन्झाय ( ३३ पद्य) भी उल्लेखनीय हैं। इन सभी रचनाओं में आपकी रात्रिभोजन चौपाई' का सर्वाधिक प्रचार हुआ। इसके प्रारम्भ में कवि ने रात्रिभोजन के दोषों का वर्णन करते हुए लिखा है :-- 'पणमिय गोयम गणधर राय, समरिय सरसति सामिणी पाय । रयणी भोजन दोष विचार बोलिसुते सांभलउ उदार । राति जिमवा केही बुद्धि, राति स्नान न थाइ शूद्धि, रातइ पितर पिण्ड न लहइ, रातइ तरपण को नवि करइ । कवि ने महाभारत पुराणादि ग्रन्थों का हवाला देकर रात्रिभोजन से होने वाली हानियों का निरूपण किया है। इस प्रतिपादन शैली का पाठकों पर अच्छा प्रभाव पड़ा था। १. डा० क० च० कासलीवाल-राजस्थान के जैन संत पृ० १८८-१८९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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