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________________ ४०६ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास गोयम गणहर पय नमी, समरी सारद माय, सहि गुरु वेदी वर्णवुअजापुत्र वर राय।" अन्त में रचनाकाल दिया है यथा : 'पूनिम पक्षि करइ जयकार, श्री गुणधीर सूरि पाटि शृङ्गार, श्री सौभाग्यरतन सूरीश, मुनिवर धर्मदास तेहनु सीस । संवत पनर अकसठइ नामि, रहिआ चउमासि ते सीणीजी ग्राम, श्री चंद्रप्रभ स्वामी चरित्र, वांच चउमासी पुस्तक तत्र, अजापुत्र नी कथा रसाल, तसु धुरि भाखि छइ सुविशाल।"2 गुर्जर की क्रिया 'लइ' और विभक्ति 'नी' आदि के प्रयोग से इसकी भाषा में गुजराती का प्रभाव प्रकट होता है। 'व्रजस्वामीरास' का रचनाकाल बताते हुए कवि लिखता है :'लहीअ पसाय रंगे धर्मदेव मुनिवर इमे, रच्यो मे रास रसालि पनर सठि संवत्सरि । व्रजस्वामी से प्रवर्तित बयर शाखा का वर्णन इस प्रकार किया गया है 'हवणां मे त्रिणि छे शाखा, चोथी निवृत्ति निवृत्ति , त्रिणय ओ कही मलि, वयर शाखा जगदीपती । तु हवि कोटिगण मुख्य वयरशाखा तिणि चन्द्रकुलिओ, गिरुओ ओ पूनिम पक्षि पूनिमचंद्र जिम निर्मली है। आप सौभाग्यसूरि के शिष्य और उनके पट्टधर गुणमेरुसूरि के गुरुभाई थे। इसमें इन्होंने वज्रशाखा और पूर्णिमागच्छ का वर्णन किया है। धर्मरुचि-आप उपकेशगच्छीय सिद्धिसूरि के प्रशिष्य और धर्महंस के शिष्य थे । आपने सं० १५६१ वैशाख सुदी ५ गुरुवार को 'अजापुत्र चौपाई' लिखा। इसमें आपने उपकेशगच्छ और अपनी गुरु परम्परा का उल्लेख किया है यथा :१. श्री मो० द० देसाई-जै० गु० क. भाग ३ पृ० ५३६ २. वही ३. वही भाग १ १० १०९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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