SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 420
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मरु-गुर्जर जैन साहित्य "ज्ञान ऊपनु जाणीय राणीय राइमइ रंगी, गिरिसरि सामीय निरखीय हरखीय सानिज्ज अंगी। सामी केवल कामिनी करि धरि राजीमती नादरी, सा सारी निजकाज राजकुमरी मुगतिइ गई सावरी । जे रेवइगिरि राय उपरि गमइ श्री नेमि पाये नमइ, ते पामइ सुखसिद्धि रिद्धिहि रमइ श्रीशाश्वती भोगवइ।"1 अन्त में संस्कृत का एक श्लोक देकर फागु समाप्त किया गया है। अन्त में लिखा है' इति श्री सुरंगाभिधो नेमिफाग सम्पूर्ण सं० १५०२ वर्षे कृतो धनदेव गणिना।" यह रास काव्योपम भाषा में काव्य सौष्टव से युक्त एक उत्तम फागु है । धनसार (पाठक)-आप उपकेशगच्छीय बिद्वान् थे। आपने सं० १५३३ विजयादशमी के अवसर पर १२८ गाथा में' 'उपकेशगच्छ पर ऊएसारास' लिखा, जिसमें उपकेशगच्छ की विरुदावली वर्णित है। इसके प्रारम्भ की पंक्तियां इस प्रकार हैं : "पणमवि पासजिणंद पाय, सरसति वयण दयउ माय, काई कविय करणहूं मंडउ, सुह सुहगुरु ना पाय वंदउ । उएस वंसनइ गच्छ जु किद्ध, उवएस नपरिहि सोजि प्रसिद्ध, पासनाह जिणवर संताणिहिं, पठम नाम हुअ इणि अहिनाणिहि ।' इसके अन्त में रचनाकाल का उल्लेख किया गया है, यथा :"संवत पनर तेत्रीस आसो मास सुदी ए रास किय उ सजगीस, दसमीय सुगुरुवारहि ऊजलीय, ऊएस पुरवर रास पढंता पूनइ आस, आवड अंगि उल्लास, अहनिसि ऊपजई अति मनरली । भवियण कएउ समाउ अवएस माह (त)णउ उपाउ, सुह संपति नउ दाउ, पाठक धनसार इम बोलियई।"3 इस रचना की प्रतिलिपि सं० १६२५ की लिखित 'राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान', जोधपुर में उपलब्ध है । गच्छीय विवरण एवं इतिहास की दृष्टि से इस कृति का महत्व है किन्तु साहित्य की दृष्टि से यह अति सामान्य रचना है । इसकी भाषा सरल मरुगुर्जर है। १. प्राचीन फागु संग्रह प० ६५-६७ २. श्री अ० च० नाहटा-जै० म० गु० कवि पृ० १२६ ३. वही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy