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________________ ४०२ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास संस्कृत भाषा में शार्दूल विक्रीडित छन्द में मंगलाचरण है; उसके बाद प्राकृत भाषा में सरस्वती की वंदना है। तत्पश्चात् मरुगुर्जर में काव्य रचना की गई है। इस प्रकार तीन भाषाओं में इनसे कुछ पूर्व सोमसुन्दरसरि ने 'नेमिनाथनवरसफागु' लिखा था। हो सकता है कि धनदेवगणि ने वह रचना देखी हो और प्रभावित हुए हों। काव्यबन्ध की दृष्टि से यह फागु पूर्वप्रचलित दोनों फागु प्रकारों से भिन्न, एक स्वतन्त्र प्रकार की रचना है। इसकी कथा भी नेमिनाथ की लोकप्रिय कथा पर आधारित है । मंगलाचरण में कवि कहता है : सरसति मुझ मति देविअ, तू जगि सार रे, नीलकमल दल सामल जिनवर बरणवु नेमिकुमार रे । कामित फल दातार सामी नेमिकुमार, हार मनोहरु अ मुगति रमणि वरु ।' मंगलाचरण के बाद १५ छंदों तक नेमिकुमार के माता-पिता का गुणगान है। आगे रानी का स्वप्नदर्शन, कुमार का जन्म और बाल्यावस्था का वर्णन किया गया है। उनकी उपमा चन्द्रमा से देता हुआ कवि लिखता है कि नेमि की बराबरी चन्द्रमा नहीं कर सकता; वे अनुपम है : "सामीय वयण अनोपम, ओपम चंद न होइ, क्षीण कलंकीय दीसइ ए तपइ न सोम ।' यह रूप वर्णन हिन्दी में महाकवि तुलसी का स्मरण कराता है । जरासंध से थककर कृष्ण यादव कुल के साथ मथुरा से आकर द्वारका में बस जाते हैं । यहां एकदिन नेमिकुमार को पाञ्चजन्य फूकता देख वे चकित होते हैं और बलभद्र से अपनी चिन्ता प्रकट करते हैं । कथा आगे बढ़ती है। वसंतऋतु आई, अवसर निकालकर कवि ने प्रकृति की शोभा का वर्णन किया है। गोपियों के साथ वन विहार के अवसर पर नेमिकुमार से विवाह के लिए आग्रह किया जाता है और अन्ततः राजुल से विवाह निश्चित होता है । वहाँ से बारात चली, तोरणद्वार पर बंधे पशुओं को देखकर नेमिकुमार ने सारथी से पूछा :___'पशु क्यों बाँधे गये हैं ?' सारथी बोला 'आपके विवाह-भोज के लिए।' नेमि को वैराग्य हुआ, यहाँ राजुल के विलाप का मार्मिक वर्णन किया गया है। नेमिकुमार दृढ़तापूर्वक संयम साधना के लिए गिरनार चले गये। रास की कुछ अन्तिम पंक्तियां नमूने के रूप में आगे उद्धृत की जा रही हैं। १. देसाई-जै० गु० क० भाग १, पृ० ४३-४४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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