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________________ मरु-गुर्जर जैन साहित्य ४०१ दौलतविजय-आप तपागच्छीय समति साधु की परम्परा में शान्ति विजय के शिष्य थे। आपने 'खुमाणरास' नामक प्रसिद्ध काव्य लिखा जिसका उल्लेख आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने वीर गाथा काल में किया है। यह डिंगल की प्रसिद्ध कृति मानी जाती है। इस रास में मारवाड़ी प्रयोगों की अधिकता है। इसमें चित्तौड़ के राणा खुमाण और उनके वंशजों का वर्णन चारण पद्धति में किया गया है। इससे लगता है कि जैन साध भी दरबारी कवि होते थे। इसके प्रारम्भ में गणेश की वंदना की गई है। इस काव्य के तीन खंड हैं। इसका मंगलाचरण इस प्रकार प्रारम्भ हुआ है : "ॐ ऐं मंत्र अपारं, सारद प्रणमामि माय सुप्रसन्नं । सिद्ध ऋद्धि बुद्धि सिरं पूरं वरवेद पडिपुन्न । वरवेद पुत्थहत्था वीणासुरवद्ध कमल करविमला । हरणमी हंसरुढा विज्जा वैजंतिया माला । दहा-कमलवदन कमलासना, कविउर मुख के पास, वसे सदा वागेश्वरी, विधविध करे विलास । गणेश वंदना-शिवसुत सुठालो सबल, सेवे सकल सुरेश, विधन विडारण वरदीयण गवरीपुत्र गणेश ।' कवि ने गुरु का स्मरण निम्न छन्द में किया है:-- तपगच्छ गिरुआ गणधार, सुमति साधु वंशे सुखकार, पंडित पद्मविजय गुरुराय, पाटोदयगिरि रवि कहेवाय । जयबुध शांतिविजय नो शिष्य, जपे दौलत मनह जगीश' यह द्वितीय खंड की समाप्ति का छंद है। इसकी भाषा काव्य गुण सम्पन्न, अलंकृत एवं वीरभाव की अभिव्यक्ति के लिए ओजगुण पूर्ण है यथा: 'भृकुटि चंद भलहले. गंग खलहले समुज्जल एक दत उज्जलो सुडंल रमवले इडंगल ।' धनदेवगणि-सं० १५०२ में आपने 'सुरंगामिधान नेमिफाग' नामक काव्य की रचना की, जो प्राचीन फागुसंग्रह में प्रकाशित है । इस में सर्वप्रथम १. श्री देसाई-जै० गु० क० भाग ३, खंड २, ५० १४९५ २. वही ___ भाग १, पृ० १६५-१६६ ३. वही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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