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________________ ४०० मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास में शंका उत्पन्न हो गई है। दूसरी प्रति सेन्ट्रल लाइब्रेरी बडोदरा में सुरक्षित है । इसके अनुसार इस रास की अन्तिम पंक्तियाँ निम्नवत् हैं 'पढइ गुणइ जे सुणइ, रास जिणहर खेलइ, सविहिं दुरिअह करिअ छेह, सिवपुर पामेइ ।' इसमें कुमारपाल का जीवन चरित्र और उसके शम प्राप्ति का वर्णन साधारण मरुगुर्जर भाषा में किया गया है। देवरत्न-आप आगमगच्छीय गुणरत्न सूरि के शिष्य थे। आपने सं० १५१३ के आसपास 'गजसिंह कुमार रास' की रचना की थी। इस रास तथा रासकार के सम्बन्ध में विवरण अज्ञात है। एक अन्य देवरत्न सूरि हो गये हैं जिनके किसी शिष्य ने सं० १४९९ में देवरत्न सूरि फागु लिखा था। संभवतः वे देवरत्न जयानन्द सूरि के शिष्य थे। उक्त फागु प्राचीन गुर्जर काव्य संचय' में प्रकाशित है। देवसुन्दर---आप जीराउला गच्छ के श्री रामकलश सूरि के शिष्य थे। आपने सं० १५९४ में 'कयवन्ना चौपइ' लिखी और सं० १५८७ में 'आषाढ़ भूति संज्झाय' लिखा (श्री अ० च० ना०, जै० म० गु० पृ० १६) कयवन्ना चौपइ में कवि ने अपनी रचना का समय और अपनी गुरु परम्परा का उल्लेख इन पंक्तियों में किया है : 'संघ सानिधि श्री पास पसाइ, नाम जपंता नवनिधि थाइ। संवत पनरचोराणुसार, मागसर वदि सातमि गुरुवार । रचनाकाल-पुष्य नक्षत्र हूँ तो सिद्ध जोग, कयवन्ना नी कथा नो भोग ।' गुरु का स्मरण इन पंक्तियों में किया गया है'श्री जीराउलि गच्छ गुरु जयवंत, श्री श्री रामकलश सूरि गुणवंत, वाचक देवसुन्दर पभणंति, भणइ गुणइ ते सूष लहंति । प्रस्तूत देवसुन्दर १६ वीं शताब्दी के अन्तिम चरण के कवि हैं। एक अन्य देवसुन्दर सूरि १५ वीं शताब्दी में हो गये जिनके किसी शिष्य ने सं० १४४० के आसपास 'काकवंधि चौपइ' की रचना की थी। इसकी चर्चा पहले की जा चुकी है। १. श्री मो० द० देसाई-जै० गु० क० भाग ३ पृ० ४९७ २. श्री देसाई जैन साहित्य नो इतिहास पृ० ५२३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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