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________________ मरु-गुर्जर जैन साहित्य ३९५ रहा होगा क्योंकि उनका समय १५वीं शताब्दी है और आपकी प्रसिद्ध रचना जंबू स्वामी चौपइ सं० १५२२ में लिखी गई है। अन्य रचनायें उसके बाद की हैं, इसलिए या तो देवा देपइ और देपाल नामक दो कवि हुए हों या प्रस्तुत देपाल कवि की आयु शताधिक रही हो। मुनि प्रबन्ध विजय के प्रबन्ध संग्रह में साह समरा के पुत्र साचो और देपाल का सम्बन्ध बताया गया है । देपाल के कथनानुसार साचो ने रत्न देकर गोरी खान के यहाँ छिपाई गई ८४ चारण पुत्रियों को मुक्त कराया था। देपाल ने इस घटना का उल्लेख 'समरा-सारंग कडखे' में भी किया है 'सारंग सोनइ इऊं सर बूढो शत्रुज तणि, वंदीजन वापइ इअं पिउ पिउ करता पाम ओ।'1 इनके रचनाओं की सूची निम्नांकित है : जावड़ भावड़ रास गाथा ९३, रोहिणीय प्रबन्ध रास गाथा २७७, चंदन वाला चौपइ १२७ गा०, आर्द्रकुमार धवल-सूड़ (श्री नाहटा ने दोनों को एक रचना बताया है किन्तु देसाई दोनों को दो रचनायें कहते हैं ।) थावच्चा कुमार भास १८ गाथा, जंबू स्वामी चौपइ २७९ गाथा (यह इनकी सर्वाधिक प्रसिद्ध रचना समझी जाती है। इसका रचनाकाल सं० १५२२ है ।) अभय कुमार श्रेणिक रास ३६८ गाथा, बारब्रत चौपइ सं० १५३४, गाथा ३४१, पुण्य पाप फल चौ० ३६८ गाथा, वज्रस्वामी चौपइ, जीरावल्ला पार्श्वनाथ रास ४९ गाथा (प्रकाशित 'मरु भारती') थूलिभद्र काव्य ‘३६ गाथा', स्नात्र पूजा' समरा सारंग कड़खा (प्रकाशित जैन युग वर्ष ५), हरियाली, मनुष्य भव लाभ गीत ९ गाथा, नवकार प्रबन्ध १२ गाथा, कायावेडी संज्झाय । जीरावला रास भी मरुभारती में प्रकाशित हो चुका है। इन रचनाओं में कवि में नाना प्रकार के काव्यरूपों का प्रयोग किया है । इन्होने रास, सुड, चौपइ, धवल, भास, काक, हरियाली, गीत, कड़खा, विवाहला आदि बहुत से काव्य रूपों का प्रयोग करके काव्य के विषय-वस्तु और अभिव्यन्जना प्रकार में वैविध्य और मौलिक सूझबूझ का परिचय दिया है । इनकी कुछ प्रमुख रचनाओं का परिचय तथा भाषा शैली के उदाहरण स्वरूप थोड़े से उद्धरण आगे प्रस्तुत किए जा रहे हैं। सर्वप्रथम इनकी सर्वाधिक प्रसिद्ध रचना 'जंबू स्वामी पंचभव वर्णन चौपइ' का परिचय प्रस्तुत है। यह प्रबन्ध है जिसकी रचना सं० १५२२ आशो शु० १५ रविवार को हुई। इसमें जंबू स्वामी का जीवन चरित्र और उनके पंचभवों का वर्णन है। रचना का प्रारम्भ गौतम गणधर की वंदना से हुआ है, यथा :१. श्री अ० च० नाहटा-परम्परा पृ० ५८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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