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________________ ३९४ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास वीनवइ (ध्यन ध्यन) डामर ब्राह्मण रे सो, जीणइ गायु वत्सराज राउरे सो। जे कोइ गाइ सांभलइ सो, तेहना सीझइ काज रे सो, तेह घरि हुइ नव निधि रे सो।' दामोदर :- १६वीं शताब्दी में भी कुछ कवि अपभ्रंश में काव्य रचना का प्रयास करते थे। वे सप्रयास तत्कालीन प्रचलित भाषा को छोड़कर रूढ़ भाषा का प्रयोग करते थे। प्रस्तुत कवि दामोदर उन्हीं कवियों में एक थे । उन्होंने 'सिरिपाल चरिउ' लिखा है जिसे न हम अपभ्रंश की और न मरुगुर्जर की रचना कह सकते हैं। इसमें चंपापुर के राजा श्रीपाल और मैना सुन्दरी की कथा दी गई है । जैन साहित्य में मैना सुन्दरी की कथा काफी प्रचलित है । इस कथा के माध्यम से सिद्धचक्र के माहात्म्य का प्रतिपादन किया गया है। मैना सुन्दरी ने अपने कोढ़ी पति राजा श्रीपाल और उसके सात सौ साथियों का कुष्ट रोग सिद्धचक्रव्रत के अनुष्ठान और जिनभक्ति की दृढ़ता से दूर किया था। इनकी अपभ्रंश में लिखी एक अन्य रचना 'नेमिणाह चरिउ' में नेमिनाथ का चरित्र चित्रित है किन्तु इसकी भाषा के उदाहरण की आवश्यकता नहीं प्रतीत होती, क्योंकि यह मरुगुर्जर की रचना नहीं है। आप जैन कवि थे और शायद भ० जिनचन्द्र के शिष्य थे। इनके सम्बन्ध में विशेष विवरण के लिए पं० परमानन्द जैन कृत 'जैन ग्रन्थ प्रशस्ति संग्रह' पृ० ११९ द्रष्टव्य है। देपाल-आप १६वीं शताब्दी के पूर्वाद्ध के एक प्रसिद्ध कवि हैं। श्री ऋषभदास ने अपनी रचना कुमारपालरास (सं० १६७०) में अन्य प्रसिद्ध कवियों के साथ इनकी भी गणना की है यथा 'आगे जे मोटा कवि राय, तास भाय चरण रज ऋषभ राय। लावण्य लीवो, खीमो खरो, सकल कविनी कीरति करो, हंसराज, वाछो देपाल, भाल हेमनी बुद्धि विशाल । सुसाधुसमरो सुरचंद, शीतल बयन जिम सारद चंद ।' कोचर व्यवहारी रास के अनुसार यह कवि दिल्ली के प्रसिद्ध देसलहरा, शाह समरा और सारंग का आश्रित था। श्री मो० द० देसाई का कहना है कि देपाल समरा-सारंग का आश्रित न होकर उनके वंशजों का आश्रित १. हिन्दी साहित्य का बृहद् इतिहास भाग ३ पृ० २६७ (ना० प्र० सभा, काशी) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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