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मरु-गुर्जर जैन साहित्य राजा प्रजापालक था और प्रजा धर्म परायण थी, वहाँ एक विष दामोदर रहते थे उनके सम्बन्ध में लिखते हुए कवि सरस्वती का स्मरण करता है । कवि ने लिखा है कि इस कृति में शृगार, वीर आदि सभी रसों का सघन वर्णन है, यथा'अति सिंगार वीर रसघणी, करुणा, रोद्र भयानक भणु,
विल्हणचरित करनि करि कहिउं, दुख सहि पाछई सुख लहिऊ ।१०।' इस प्रकार विल्हण का बहु रस-रंगी चरित्र चित्रित करके अन्त में कवि कहता है :
सो फल सढसठ तीरथ कीई सोफल दान महा सद दीइं
जो फल पर उपगार करत, सो फल विल्हण चरित सुणंत ।३०। रचना काल की सूचना देता हुआ कवि लिखता है :-- ___ 'संवत पन रह सइ सैतीस, सुदि वैसाख दसइ गुरु सीस,
आदि कथा संकटमइ रही, तांज्लग दल्ह सुमति करि कही।'' श्री देसाई जी का अनुमान है कि 'अभिनव ऊझणु नामक खंड काव्य के लेखक देहल और प्रस्तुत कवि दल्ह सम्भवतः एक ही कवि हैं। देहल के सम्बन्ध में विशेष जानकारी के लिए श्री केशवराम शास्त्री कृत 'कवि चरित' पृष्ठ १५७ से १५९ तक पठनीय है । ___दामोदर (डामर)-ये भी जैनेतर कवि हैं। इनकी रचना वेणि वत्सराज रास वीवाहल में पाटण के वत्सराज का जीवन, उनके विवाह आदि का वर्णन है । यह विवाहल विवाह के अवसर पर गाया जाने वाला गीन है
और जैन मुनियों के दीक्षा के अवसर पर संयम श्री के साथ होने वाले रूपक विवाह गीतों से भिन्न है। इसके प्रारम्भ में कवि सरस्वती की वंदना करता हुआ लिखता है :'सरसति सामिणी वीनवू मांगूय एक पसाय, बत्तीस लक्षणि गुणि आगल गाइस्यु वच्छराउ, तेज नयर पाटण भलु अमरावती समूहोइ, मृतलोक वछराज
राजिइ, अवर न बीजू कोइ ।' अन्त में अपना नाम और जाति ब्राह्मण का उल्लेख किया है किन्तु रचनाकाल नहीं दिया है :१. श्री मो० द० देसाई-जै० गु० क० भाग ३ खण्ड २, पृ० २१२४ २. वही पृ० २१२४-१२२५
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