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मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास चंपावती के पार्श्वनाथ की स्तुति में यह रचना लिखी गई है । यह स्तुति उस समय की गई जब इब्राहीम लोदी द्वारा रणथंभौर पर आक्रमण हुआ, वहाँ का तत्कालीन स्थानीय सामंत रामचन्द्र जो प्रजा की रक्षा में असमर्थ था, लोग नगर छोड़कर भागने लगे, उसी समय विपत्ति से रक्षा के लिए पूजापाठ प्रारम्भ हुआ था, कहते हैं कि पार्श्व प्रभु की कृपा से विपत्ति टल गई । अतः इसका सम्बन्ध एक प्रमुख ऐतिहासिक घटना से है । 'पार्श्वनाथ जयमाला' भी चंपावती के पार्श्वनाथ का ११ पद्यों में स्तवन ही है। इसमें भी पार्श्व भगवान की भक्ति से प्लावित ११ उत्तम भजन हैं । 'सप्त व्यसन षट्पद' में जुआ, मांस-भक्षण, मद्यपान, वेश्यागमन, शिकार करना, चोरी करना, परस्त्री गमन नामक सात व्यसनों का दोष दिखाया गया है और इन्हें वजित बताकर त्यागने का उपदेश दिया गया है। इसी प्रकार 'व्यसन प्रबन्ध' में भी इन्हीं सात व्यसनों की निन्दा की गई है । शायद उस समय सप्त व्यसनों से समाज अधिक संत्रस्त था। तभी कवि को दो-दो रचनायें करनी पड़ी। जूओ से पाण्डव, मद्यपान से यादव, पर स्त्री गमन के असुर राज रावण का समूल नाश हो गया था, कवि कहता है :_ 'इके विसनि कहि ठकुरसी, नरइ नीचु नरु दुह सहइ,
जह अंगि अधिक अच्छहि विसन ताह तणी गति को कहइ ।' 'जैन चउवीसी' में २४ तीर्थंकरों की वंदना है । 'ऋषभदेव स्तवन' के दो अन्तरों में 'ऋषभ' का स्तवन है । 'शीलगीत' में ब्रह्मचर्य की महिमा और उसकी कसौटी पर विश्वामित्र आदि को भी खरा न उतर पाने का संकेत किया गया है । 'कवित्त' में विविध विषयक छह कवित्त हैं। इस प्रकार प्रकट होता है कि आप प्रकृति प्रदत्त प्रतिभा सम्पन्न कवि थे और विविध प्रकार की रचनायें करने में सिद्धहस्त थे।
दल्ह-आपने सं० १५३७ में 'विल्हण चरित चौपइ' लिखी। श्री मो० द० देसाई ने इन्हें जैनेतर कवि कहा है। यह रचना अन्य जैन कवियों की कृतियों के समान जिन या तीर्थंकर की वंदना से नहीं बल्कि सीधे गोपाचल गढ के वर्णन से प्रारम्भ हो जाती है :---
'गढ़ गोपाचल अगम अथाह, तेजतरुणि तुंवर वरनाह,
सेषयपाल अमरपुर इंदु, महिमंडल कल्याण नरिंदु ।१।' १. डा० क० च० कासलीवाल-म• बूचराज एवं समकालीन कवि पृ० २६१-२६३ १. श्री मो० द० देसाई-जै० गु० क० भाग ३ खंड २ पृ० २०१३-१४
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