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मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास गोयम गणहर पयनमी अराहिसु अरिहंत, हृदय कमल अहनिस वसइ भव भंजण भगवन्त । भवभंजन भगवन्तनू आण अखंड वहेसि, सील सिरोमणि गुण निलऊ जंबू कुमर वर्णेसु ।' इसमें रचना काल का उल्लेख इस प्रकार किया गया है :'संवत पनर बाबीसमई अव, रचि ईणइ पूनिमइ ।
भणइ गुणइ नरनारि तेह मनि उपशम रस वसइ ।१७८ ।। सर्वप्रसिद्ध रचना के बाद सबसे छोटी रचना कायाबेड़ी संज्झाय' की भाषा का नमूना देखिये :आदि--'काया बेड़ी काट सत्त बेध अठि कोड़ी बंध बांधी।
न्हांन्हा परहुण धणा निगम्या, अति दुर्लभ तुलांधी।' अन्त-'विवेकु खंभु ज्ञानि पंजारि, निरुखिला दीढुला सेजेज स्वामी,
देपाल भणइ जिणु मंदिरु पामी, वधामणी दिउ धामी ।५।। स्थूलिभद्द कक्कावाणी और स्थूलभद्र फाग नामक दो रचनायें स्थूलभद्र के चरित्र पर आधारित हैं। ‘फाग' छोटा किन्तु सुन्दर काव्य है, नमूना देखिये :
'नंदउ सो सिरी थूलिभदु जे जुगह पहाणो,
भलियउ जिणि जग मल्ल सल्ल रइवल्लह माणो । इसमें उपमा, अनुप्रास आदि अलंकारों का प्रयोग द्रष्टव्य है। चंदन वाला चरित्र चौपइ में कवि स्वयं को सुकवि कहता है जो ठीक ही है :
'चंदन वाला चरित गुण बुद्धिमाण सुविशाल,
संघतणइ सुपसाऊलिइ कहिइ सुकवि देपाल।' सम्यक्त्व वारव्रत कुलक, स्नात्र पूजा आदि छोटी रचनायें सम्प्रदाय के व्रत नियम, पूजा पद्धति आदि से सम्बन्धित हैं । अभय कुमार श्रेणिक रास में मगध के महाराज श्रेणिक और उनके मन्त्री अभय कुमार का संवाद है जिसके माध्यम से रोहणिया चोर की कथा कही गई है।
'जावड़ भावड रास' में जावड़ का पावन चरित्र चित्रित है। पुण्य पाप फल (स्त्री वर्णन) चौपइ का प्रारम्भ संस्कृत श्लोक से हुया है इसके अन्तिम भाग को कवि ने पुण्योदय फल प्रबन्ध सप्तमी अधिकार कहा है । इसकी अन्तिम पंक्तियां देखिये :१. श्री मो० द० देसाई-जै० गु० कभाग १ पृ० ४०-४१ २. श्री अ० च० नाहटा-जै० म० गु० क. पृ० १२४
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