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३९० मरु-गुर्जर जोन साहित्य का बृहद् इतिहास
पार्श्वनाथ शकुन सत्तावीसी सं० १५७८, कृपण छंद सं० १५८०, मेघमाला कहा, पंचेन्द्रिय वेलि, सं० १५८५, सीमंधर स्तवन, नेमि राजमती बेलि, चिन्तामणि जयमाल, जिन चउवीसी, शीलगीत, पार्श्वनाथस्तवन, सप्तव्यसन षट्पद, ऋषभदास गीत और कवित्त । इनमें से मेघमालाकहा अपभ्रंश भाषा में रचित है शेष सभी मरुगुर्जर की कृतियां हैं। इस प्रकार ये मरुगूर्जर के प्रसिद्ध और उत्तम कवि हैं। इनका उल्लेख प्रायः सभी इतिहास ग्रन्थों में मिलता है।
नाथूराम प्रेमी, कामता प्रसाद जैन, परमानन्द शास्त्री, डॉ. शिवप्रसाद सिंह, डा० प्रेमसागर जैन आदि ने अपने ग्रन्थों में इनका विवरण दिया है। ठकुरसी दूढाहड प्रदेशीय थे और मेघमालाकहा में स्वयं अपने को उक्त प्रदेशीय बताया भी है। अतः इनकी भाषा पर ढढाणी भाषा का प्रभाव सर्वाधिक है । आगे इनकी कुछ रचनाओं का संक्षिप्त परिचय एवं कुछ उद्धरण दिए जा रहे हैं।
'नेमि राजमती बेलि' पद्धड़िया छन्द में नेमिराजुल की मधुर कथा है । इसमें १० दोहे और ५ पद्धडिया छन्द हैं । नेमि की सुन्दरता का वर्णन कवि ने इन शब्दों में किया है :--
'कवि कहइ सुनिय धणु धणु, जसु परणइ एह मदणु, इणि परितिय अणेक्क पयारा, बहु करिहिति काम विकारा। जिणु तव इण दिठि दे बोले, नाउं मेह पवन भैडोले ।५।। कवि ने अन्त में अपना परिचय इस प्रकार दिया है :-- कवि घेल्ह सुतनु ठाकुरसी, किए नेमि सु जसि मति सरसी,
नरनारि जाको नित गावै, जो चित सो फल पावै ।२०।' पंचेन्द्रिय बेलि-इनकी प्रसिद्ध और सरस काव्य कृति है। इसमें पांच इन्द्रियों की वासना और उससे उत्पन्न विकृतियों पर प्रकाश डाला गया है। यह बेलि सं० १५८५ कार्तिक शुक्ल १३ को सम्पूर्ण हुई थी।
_ 'संवत पन्द्रह से पिच्चासे तेरसि सुदी कातिग मासे ।' १. डा० ० च० कासलीवाल-कविवर बुचराज एवं उनके समकालीन कवि
पृ० २४२ २. वही ३. वही
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