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________________ मरु-गुर्जर जैन साहित्य ३८९ पाय पूजी मनहर जी भरत राजा संचऱ्या, अयोध्यापुरी राजकरवा सयल सज्जन परवरया । विद्या गणवर उदय भूपर नित्य प्रगटन मास्कर, भट्टारकयशकीरति सेवक भणिय ब्रह्म जीवंधर ।२२।। इस बेलि की भाषा पर राजस्थानी का प्रभाव अधिक है। इसकी एक प्रति महावीर भवन, जयपुर में संग्रहीत है। जीवराज-इस कवि के सम्बन्ध में जइराज या जयराज का विवरण देखा जाये। डुगर-आपकी रचना नेमिनाथ फाग (गा० २६) सं० १५३५ में लिखी गई थी। यह प्रकाशित रचना है । इसका प्रथम छन्द इस प्रकार है : 'अरे तोरणि वालम आविउ, यादव केरउ चंद, अहे पशअ देखि रथ चालिऊ दिहि दिसि हऊ छविंद ।' नेमि विवाह के लिए तोरणद्वार तक जाकर वहाँ बधे पशुओं को देख वापस लौट पड़े। प्रस्तुत बारहमासा यहीं से प्रारम्भ होता है । इसमें राजीमती के विरह पूर्ण बारह महीनों का वर्णन है। इसका अन्तिम छन्द इस प्रकार है : 'अहे राजिमति सिऊं राइमइ, पुहुती सिद्धि शिलाय, डुंगर स्वामी गाइतां, अफल्यां फूलइ ताह ।२६।। श्री अ० च० नाहटा ने इस छंद को अन्तिम नहीं कहा है। वे इसमें कुल २८ छंद बताते हैं । उनके अनुसार अन्तिम छंद निम्नांकित है :-. 'नयणा नेहु भरे गयउ, सुनेमिकुमार, रेवइया गिरि सिरि चडीयउ, लीधउ संजमभारु ।२८। ठकुरसी-आपके पिता घेल्ह स्वयं कवि थे। वे चांटसु निवासी खण्डेलवाल दिगम्बर जैन श्रावक थे। उनकी दो रचनायें 'बुद्धि प्रकाश' और 'विशालकीति गीत' उपलब्ध हैं । अतः ठकुरसी को काव्य गुण पैतृक सम्पत्ति के रूप में प्राप्त हुआ था। इनकी अब तक १५ उत्तम कृतियों का पता चल चुका है। वे निम्नांकित हैं :-- १. डॉ० क० च० कासलीवाल-राजस्थान के जैन संत पु० १८८ २. श्री मो० द० देसाई-जै० गु० क० भाग ३ पृ० ४९२ ३. श्री अ० च० नाहटा-जै० म० गु० कवि पृ० १०३ - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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