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________________ मरु-गुर्जर जैन साहित्य ३८७ थी । उस नगर में १६वें तीर्थङ्कर शान्तिनाथ का चैत्यालय था; वहीं यह राम लिखा गया था । इस रात के ९३ छन्दों में नेमिनाथ का जन्म, विवाह के समय वैराग्योदय और तन तथा कैवल्य प्राप्ति आदि प्रमुख घटनाओं की झलक मिलती है । यह मरुगुर्जर भाषा की अच्छी रचना है। आगे इसका मंगलाचरण प्रस्तुत किया जा रहा है : ' सारद सामिणि मांगु माने, तुझ चलणे चित्त लागू ध्याने, अविरल अक्षर आलु दाने, मुझ मूरख मनि अवि शांति रे । गाऊं रास रलियामणु रे, यादव नां कुल मंडण सार रे, न म नेमीश्वर जाणिज्यो रे, तसु गुण पुहुति न लाभि पाररे । राजमती वर रूयडू रे नवट भवंतर मगीय भून्तरे, दशमि दुरधर तप लीउरे, आठ कर्म चउमी आणु अन्तरे । " रचनाकाल और स्थान का निर्देश इस प्रकार किया गया है :'चन्द्रवाण संवच्छर कीजि, पंचाणु पुण्य पासि दीजि, माघ सुदि पंचमी भणीजी गुरुवारि सिद्ध योग ठवीजि, जावछ नयर जगि जाणइ रे, तीर्थंकर वली कहीइ सार रे, शांतिनाथ तिहाँ सोलमुरे, कस्यु राम तेह भवण मझार रे । ९३ । २ नेमि राजुल की लोकप्रिय कथा पर आधारित यह लघुरास नृत्य और संगीत की संभावनाओं से पूर्ण तथा लोक प्रचलित भाषा शैली में लिखा होने के कारण साहित्यिक महत्व का है । इसकी अन्तिम पंक्तियों में कवि ने अपने गुरु का सादर वन्दन किया है, यथा : 'श्री यश की रति सूरीनि सूरीश्वर कहीइ, महीयलि महिमापारन लहीरे, तातरूपवर वरसि नित वाणी, सरस सकोमल अमीय रूपाणीरे । तास चलणें चित लाइउरे, गाइउ राइ अपूरब रास रे, जिनसेन मुगति करीदे, तेहना वयण तणउ वलीवासरे ।' दिगम्बर कवियों की भाषा में तत्कालीन काव्य भाषा के साथ हिन्दी के प्रति विशेष झुकाव दिखाई पड़ता है । जिनहर -- ? रचनाकार का नाम शंकास्पद है किन्तु इनके पर जो रचना प्रचलित है वह निर्विवाद है । रचना का नाम है - 'विक्रम वरित्र पंच दंड चोपइ' । यह सं० १५५६ वैशाखसुदी २ को पांच खंडों में लिखी गई । १. डॉ० क० च० कासलीवाल - राजस्थान के जैन संत पृ० १८६ २ . वही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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