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मरु-गुर्जर जैन साहित्य
३८५ ____ अलंकारों में रूपक, अनुप्रास, दृष्टांत पर आपका आग्रह अधिक है। उन्होंने काव्य कृतियों को संवाद, प्रश्नोत्तर, वर्णन आदि द्वारा रोचक बनाया है। ___ छंदों में दूहा, चौपइ, वस्तु, ढाल, भास आदि नाना छंदों का प्रयोग किया गया है। इनके काव्य में तत्कालीन समाज के अनेक स्पष्ट चित्र मिलते हैं और बहुत सी महत्वपूर्ण राजनैतिक सूचनायें मिलती हैं ।
आपके गीतों में पर्याप्त गेयता है । 'उदाहरणार्थ 'धर्मतरु गीत' का एक उद्धरण प्रस्तुत है :
"भव तरु सीचे हो मालिया, तिहि तरि च्यारि डाल, चुहु डाली फल जुवा ते फल राखइ काल ।
रे प्राणी तू काइन चेतहि ।" ब्रह्मजिनदास के सम्बन्ध में पर्याप्त जानकारी श्री मो० द० देसाई के जै० गु० क० भाग १५० ५३, भाग ३ पृ० ४७६ से ४८२ तक उपलब्ध है । श्री अ० च० नाहटा ने अपने निबन्ध राजस्थानी साहित्य का मध्यकाल' 'परम्परा' पृ० ६७ पर उनकी २७ रचनाओं की सूची दी है। डा. कस्तूरचन्द कासलीवाल ने राजस्थान के जैनसंत' में इनका विवरण पृ० २२ से ३९ तक दिया है । लेखक इन सभी विद्वानों से सूचनायें प्राप्त कर सका है। इसके अतिरिक्त निम्नांकित रचनायें भी महाकवि के सम्बन्ध में आवश्यक जानकारी के लिए अवलोकनीय हैं :
(१) भ० सकलकीति व्यक्तित्व एवं कृतित्व - डा० बिहारीलाल जैन (२) भारतीय संस्कृति में जैनधर्म का योगदान-डा० हीरालाल जैन (३) राजस्थान एवं गुजरात के मध्यकालीन संत एवं भक्त कवि
डा० मदनकुमार जानी। (४) राजस्थानी भाषा और साहित्य-डा० हीरालाल माहेश्वरी (५) हिन्दी काव्य धारा--महापंडित राहुल (६) राजस्थानी भाषा और साहित्य-डा० मोतीलाल मेनारिया।
जिनवद्धन-सं० १५१५ के आसपास आपने 'धन्नारास की रचना की। आपकी एक अन्य प्रकाशित रचना 'उपदेशकारक कक्को' का १. डॉ० प्रेमचन्द रॉवका-महाकवि ब्रह्म जिनदास प्० ४१८-४२० २. श्री मो० द. देसाई-जै० गु० क० भाग १ पृ० ५१
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