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मरु-गुर्जर जैन साहित्य
एकचित्त करी संभलीए भाव धरवि मनमांहि उज्वल, श्री सकलकीरति पाय प्रणमी ने ब्रह्मजिणदास भणे सार । पढ़े गुणे जे सांभले तेहने पुण्य अपार ।" "
हरिवंशपुराण रास भी तीन हजार छंदों की बृहद् रचना है । इसका दूसरा नाम नेमीश्वर रास भी है । इसकी रचना सं० १५२० में हुई । इसमें मि और कृष्ण की कथा के साथ जीव जीवादि तत्वों का विवेचन, द्वारका दहन, कृष्ण मृत्यु आदि का भी वर्णन किया गया है ।
अजित जिनेसर - दूसरे तीर्थंकर अजितनाथ के जीवन पर आधारित ३०० छन्दों की रचना है । इसमें उनके पंच कल्याणकों का सुन्दर वर्णन किया गया है। इसमें वस्तु, दूहा, भास आदि छंदों का प्रयोग किया गया है । रचना समय अज्ञात है ।
हनुमंत रास - राम के साथ और अलग भी हनुमंत भारतीय जन जीवन के जाने माने पौराणिक पात्र हैं । जैनधर्म में इनकी गणना श्रेष्ठ पुरुषों में की जाती है। उन्हीं पर आधारित यह ७२८ छंदों का रास है ।
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रास का अधिकांश भाग पवन और अंजना की कथा पर आधारित है जिसका मूलाधार संस्कृत का पद्मपुराण है । इसमें हनुमंत की खरदूषण की भांजी से शादी भी दिखाई गई है और अन्त में अपना राजपाट वे अपने पुत्र मकरध्वज को सौंप कर स्वयं जिनशासन स्वीकार कर मुक्त होते हैं । हनुमंतरास में राजकन्याओं की प्राप्ति का वर्णन कवि ने इस प्रकार किया है
नील महानील की रुवडीए, बेटीय वोधीए चंग तो, रूप सोभागे आगलीए, मदनावली मने रंगि तो | 2
इसके अलावा सुकुमाल, नागकुमार, चारुदत्त, सुदर्शन, श्रेणिक आदि सभी प्रसिद्ध चरित्रों की रचना करने के अलावा ब्रह्मजिनदास ने रात्रि भोजनरास लिखकर रात्रि भोजन की हानि के प्रति चेतावनी दी है । सासर वासा को रास में पुत्री के ससुराल जाने और गृहिणी धर्म के पालन करने का संदेश दिया गया है । धर्मपरीक्षारास में धर्म का मर्म समझाया गया है । नाना प्रकार के व्रत, अनुष्ठान, पूजा पाठ आदि पर प्रचुर गीत आपने लिखे हैं ।
१. डॉ० प्रेमचन्द रॉवका - महाकवि ब्रह्म जिनदास पृ ३९ ४०
२ . वही पृ० ३८१
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