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मरु-गुर्जर जैन साहित्य
३८१ रूपक काव्यों में परमहंस रास, धर्मतरु गीत और चूनड़ी गीत तथा गीतों में बारह व्रत गीत, प्रतिमा ग्यारह का रास, चौदह गुण स्थानक रास, अठावीस मुल गुण रास, द्वादशानुप्रेक्षा, कर्म विपाक रास, समकित मिथ्यात रास, निजमनि सबोधन, जीवड़ा गीत, शरीर सफल गीत और आदिनाथ वीनती, ज्येष्ठ जिणवर लहान, जिणवर पूजा हेली, तीन चौबीसी वीनती, पंच परमेष्ठी गुण वर्णन रास, मिथ्या दुक्कड़ वीनती, पूजा गीत, गिरनारि धवल, चौरासी जातिमाला, गुरु जयमाल और गौरीभास आदि उपलब्ध हैं। इन रचनाओं में नाना प्रकार के काव्यरूप-प्रबन्ध, खण्ड काव्य, मुक्तक, गेय, पाठ्य आदि सभी का प्रयोग हुआ है । इसमें सर्वाधिक रास, गीत और भास आदि हैं। आपने संस्कृत, प्राकृत, गुजराती, राजस्थानी और हिन्दी में लिखा है किन्तु राजस्थानी गुजराती हिन्दी उस समय अलग-अलग नहीं थी बल्कि एक थी, डॉ० सुनीति कुमार चाटुा ने लिखा है 'उस समय तक गुजराती,
और राजस्थानी भिन्न भिन्न न होकर मरुगुर्जर नाम से एक ही भाषा थी।' डॉ० मदन कुमार जानी कहते हैं कि '१६वीं शताब्दी तक गुजरात और राजस्थान दोनों प्रदेशों की भाषा में साम्य होने के अनेक युक्तियुक्त प्रमाण मिलते हैं। इनकी अब तक कुल प्राप्त ८६ रचनाओं में से १ प्राकृत, १५ संस्कृत और शेष ७० मरुगूर्जर की रचनाये हैं इस प्रकार १६वीं शताब्दी में मरुगुर्जर के ये महाकवि सिद्ध होते हैं। इनकी कुछ प्रमुख रचनाओं का परिचय आगे प्रस्तुत है।
आदि पुराण-इसका आधार संस्कृत का आदिपुराण है। इसमें प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ का पावन चरित्र अंकित है। कोशल की महारानी ने स्वप्न देखा, फलतः प्रथम तीर्थंकर का जन्म हुआ 'स्वप्न फलि अति रुवडो, पुत्र होसे तम्हचंग, तीर्थंकर रलियावणो त्रिभुवन मांहि उत्तंग ।' इनकी सुनन्दा और सुमंगला नामक रानियों से क्रमशः भरत और बाहुबलि नामक पुत्र हुए । आदि जिनेश्वर ने ही असि, मसि, कृषि, वाणिज्य, शिल्प विद्या आदि षट्कर्म की सर्वप्रथम शिक्षा दी और पुत्रों के बड़े होने पर अयोध्या का राज्य भरत को और पोदनपुर का बाहुबलि को सौंपा
और अप्सरा नीलजना की मृत्यु से विरक्त हो घोर तप करके संयमपूर्वक निर्वाण प्राप्त किया । आपने जगत् को संदेश दिया :१. डॉ० सु० कु० चाटुर्जा-राजस्थानी भाषा पृ० ४५ २. डॉ. मदन कुमार जानी- राज० एवं गुज० के मध्य सन्त एवं भक्त ककि
पृ० २३
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