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________________ मरु-गुर्जर जैन साहित्य है।' उक्त अस्सी वर्षों में से यदि प्रारम्भिक बीस वर्ष निकाल दिया जाय तो आपका रचनाकाल ६० वर्षों का ठहरता है। आप १५वीं शताब्दी के अंतिम और १६वीं शताब्दी के प्रथम चरण के कवि हैं । आपकी सबल रचना रामरास का समय फा० कामिल बुल्के, विण्टरनित्ज और नाथूराम प्रेमी आदि विद्वानों ने सं० १५०८ निश्चित किया है, इसलिए इनकी प्रौढ़ रचनाओं का समय १६वीं शताब्दी में आने के कारण इनका विवरण १६वीं शताब्दी के कवियों के साथ दिया जा रहा है । विक्रम की १४वीं से १६वीं शताब्दी तक का दो सौ वर्ष भारत में धार्मिक क्रान्ति का काल था और साहित्य का स्वर्णकाल गिना जाता है। इस काल को महिमा मंडित करने वाले कृती संतों में ब्रह्मजिनदास का नाम उल्लेखनीय है। आप हिन्दी के प्रसिद्ध कवि विद्यापति एवं संत कबीर के समकालीन थे। ब्रह्म जिनदास ने अपने गुरु सकलकीति के नेतृत्व में संचालित अनेक संघ यात्रायें की थी और स्वयं कई यात्राओं और प्रतिष्ठाओं का नेतृत्व किया था। आपके साहित्य में धर्म का उदात्त स्वरूप चित्रित हुआ है। आपका मुख्य स्थान डूगरपुर के आसपास का बांगड़ क्षेत्र था । बागड़ प्रदेश हिन्दी क्षेत्र से लगा होने के कारण इस क्षेत्र की भाषा हिन्दी के अधिक करीब है। इस समय लोक भाषाओं में रामानन्द, कबीर, नानक, ज्ञानदेव, नामदेव, विद्यापति, लोकाशाह आदि सन्तों और कवियों ने अपने-अपने क्षेत्र में साहित्य-सृजन प्रारम्भ कर दिया था। उस समय इन संतों की एक सामान्य काव्य भाषा प्रचलित थी जिसमें थोड़ा प्रादेशिक अन्तर था। हिन्दी, गुजराती और राजस्थानी में अभी भी बड़ा फर्क नहीं पड़ा था। डॉ० प्रेमचन्द ने लिखा है 'जैन साधुओं ने अपनी लोकभाषा मरुगुर्जर में आख्यान एवं साहित्य के माध्यम से दोनों प्रदेशों में एकता बनाये रखने का सुन्दर प्रयास किया। इसी प्रकार डॉ० मदनकुमार जानी ने अपने ग्रंथ 'राजस्थान एवं गुजरात के मध्यकालीन भक्त कवि' में लिखा है कि गुजराती एवं मारवाड़ी दोनों के ध्वनितत्त्व और रूपतत्त्व का ऐतिहासिक और तुलनात्मक विवेचन करने पर कहा जा सकता है कि ये दोनों भाषायें एक मां की दो बेटियाँ हैं। इनके स्वतन्त्र विकास के पूर्व इनका सम्मिलित एकरूप मरुगुर्जर में ही मिलता है। ब्रह्म जिनदास की काव्य भाषा इस कथन का ज्वलन्त प्रमाण है। ____ कवि परिचय-जिनदास नामक पांच जैन विद्वानों का उल्लेख मिलता १. डॉ. प्रेमचन्द रॉवका-महाकवि ब्रह्मजिनदास, व्यक्तित्व एवं कृतित्व २. वही, पृ० १० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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