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________________ मरु-गुर्जर जैन साहित्य ३७७ 'पूगल पिंगल राव, नल राजा नरवरै नयर, अदीठा अणदीठा, सग्गइ दैव संयोगे। पिंगल ऊंचालो कियो, गयो नरवर ते देस, पिंगल देस दुकाल थयो, किणही बाव विशेष । नलराजा आदर दियो जो राजवियां जोग, देसवास सहि रावला 9 घोड़ा लोग। नरवर नल राजा तणो, ढोलोकूमर अनप, राणी राव पिंगल तणी रीझी देखे रूप । पिंगल पुत्री पद्मिणी मारवणी ते सुनाम, जोसी जोय विचारियो धन विधाता काम ॥५।' कथा आगे बढ़ती है । पिंगलराव की रानी ने नरवर के राजा नल के कुमार ढोला को अपनी कन्या के लिए पसन्द किया। यह कथा भी अन्य प्रेमकथाको तमाम तरह मंजिलें पार करती है; तब अन्त में कवि कहता है : आणंद अति उच्छव हुवो नरवर वाज्या ढोल, ससनेही सैणां तणां कल में रहिया बोल । ४४० । यह प्रेमकथा मुख्य रूप से दोहे में और कहीं-कहीं गाथा, सोरठा जैसे छोटे मात्रिक छंदों में कही गई है। कवि ने लिखा है : "दहा गाहा सोरठा मन विकसणां बखांण । अणजाणी मूरख हंस, रीझै चतुर सुजाण ।४४१। यह कथा मारवाड़ की है और इसकी भाषा में भी मारवाड़ी (राजस्थानी) की प्रधानता है। दोहों में यत्र-तत्र मधुर भाव बड़े काव्यात्मक पद्धति से व्यक्त किये गये हैं । अतः राजस्थानी भाषा और काव्यत्व की दृष्टि से यह कृति मनीषियों के अध्ययन की उत्तम सामग्री प्रस्तुत करती है। जयहेमशिष्य-(अज्ञात) इस कवि की कृति 'चित्तौड़ चैत्य परिपाटी' (४३ कड़ी) एक ऐतिहासिक और प्रकाशित रचना है । जयहेम हेमविमल सूरि के शिष्य थे। तपागच्छीय आचार्य हेमविमल सूरि को आचार्य पद सं० १५४८ में प्राप्त हआ था और सं० १५६८ में उनका स्वर्गवास हो गया था, अतः यह रचना १६वीं शताब्दी के अन्तिम दशक की हो सकती है। इसका प्रारम्भिक पद्य आगे प्रस्तुत है : 'गोयम गणहर राय पाय पंकय पणमेवी, हंसगमणि मृगलोयणी सरसति समरेवि; १. श्री अ० च० नाहटा--जै० म० गु० कवि पृ० १२४-१२५ www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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