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मरु-गुर्जर जैन साहित्य
पहिलु थूल प्राणातिपात विरमण व्रत भणीइ, वीजुं थूल अलीय वयण परिहार सुथुणीइ |9| 2 इसका रचना काल कवि ने इस प्रकार बताया है :"जीव जीव भंग कछ ओ, सिवसुह मूल सुरमं
पनर सित्तोहतर लिद्ध मइ, सुगुरु पास गिहधम्म । " 2 'स्थूलभद्र बासठीओ' - रचना के प्रारम्भ में माँ शारदा की प्रार्थना करता हुआ कवि लिखता है :
'मृगनयणी रे शशिवयणी सारद नमूं, दिउ वाणी रे वाणी तुम्हनइ पय नमू, विनवीय रे नमीयइ गुरु गोयमवली, मति मांगु रे लांगु सहिगुरु पयलली |
इसमें स्थूलभद्र का आदर्श चरित्र वासठीओ नामक नवीन काव्य विधा में चित्रित किया गया है । इसके अन्त की पंक्तियाँ देखिये :
"अतिहि दुक्कर हिकर कहइ मुनिवर सुणीसोह मुणीश्वरा, चउरासी चउवीसी जं लगि नाम महीयल विस्तर्यां । श्री माणिक सुन्दर सूरि सीसइ, भणइ जयवल्लभ वरो, श्री थूलभद्र सुजाण सुंदर संघ चउवेह सुखकरो । ६३ । ३ 'नेमि परमानन्द वेलि - यह बेलि नामक विशेष काव्य विधा में 'नेमि' के आकर्षक व्यक्तित्व पर आधारित रचना है । इसकी प्रारम्भिक पंक्तियाँ प्रस्तुत हैं
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'गिरि गिरिनारि सोहामणो रे, पाखलि फिरता वन्न, जसु सिरि स्वामी यादववंशी, सोहइ सायल वन्न रे हीयउला हेरि रे नेमि जी नाम मेल्हि परमाण दरस वेलि रे, हृदय कमल तुं झेलि रे, उपशम रंग ज रेलि रे, नेमि० 14 इसकी अन्तिम पंक्तियाँ इस प्रकार हैं
" श्री जइवलभु मुनीश्वर नवइ सुणसु नेमि जिणंद, दोइ कर जोड़ी सेवा तोरी, मांगू वली वली एह रे । ४८ ।
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आपने अनेक लोकप्रिय चरित्रों और विधाओं जैसे बेलि, वासठीओ, रास आदि में
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१. श्री मो० द० देसाई - जै० गु० क० भाग २. वही, भाग ३ खण्ड २, पृ० १४९१
३. वही, भाग ३ पृ० ५१७
४. श्री अ० च० नाहटा - म० गु० जे० कवि पृ० १३३
५. वही, पृ० १३३
विषयों पर नवीन काव्यमरुगुर्जर भाषा-साहित्य का
खण्ड १ पृ० ५१७
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