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________________ मरु-गुर्जर जैन साहित्य नामक एक अन्य रचना भी इनकी कही जाती है। ऐतिहासिक जैन का संग्रह में जयकीति के दो गीत संकलित हैं जिनके गुरु श्री कीर्तिरत्नसूरि हैं दोनों गीतों में जयकीति ने अपने गुरु की प्रशस्ति की है। इनमें ए. गीत की दो पंक्तियां इस प्रकार हैं :-- 'सद्गुरु गुण पार न पावै, मुनिजन वर भावना भावै हो, जयकीर्ति सदा गुण बोले, सद्गुरु गुण कोइ न तोले हो।' इन गीतों की भाषा प्रायः हिन्दी ही है। यदि इन्हीं जयकीर्ति क.. लिखी 'पार्श्व भवान्तर छन्द' भी हो तो ये दोनों एक ही व्यक्ति हो सकते। हैं और इनके गुरु कीर्तिरत्नसूरि हो सकते हैं। चन्द्रकीर्ति ने भी श्री कीर्ति रत्नसूरि गीत लिखा है । शायद चन्द्रकीर्ति और जयकीर्ति गुरुभाई हों। यह रचना भी ऐ० जैन काव्य संग्रह में प्रकाशित है। कीतिरत्न के शिष्य कल्याणचन्द्र ने भी कीर्ति रत्न विवाहलु और कीर्तिरत्न चउपइ लिखा है जिससे यह स्पष्ट है कि कीर्ति रत्नसूरि १६वीं शताब्दी के प्रथम चरण में उपस्थित थे । अतः यह कवि भी १६वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध के होंगे। मुनिजयलाल -आपकी रचना 'विमलनाथ स्तवन' जिस गुटके में निबद्ध है वह सं० १६२६ की लिखित है, इससे इसका रचनाकाल १६वीं शताब्दी अनुमानित है । रचना में रचना का समय, स्थान आदि विवरण नहीं दिया गया है। विमलनाथ स्तवन १३वें तीर्थंकर विमलनाथ की वैराटपुर (जयपुर) में प्रतिष्ठित प्रतिमा को लक्ष्य करके लिखा गया स्तवन है। इस स्तवन की भाषा में सहज प्रवाह एवं गेयता है। भाषा में राजस्थानी प्रयोग का अनुपात अधिक है। उदाहरणार्थ कुछ पंक्तियां उद्ध त की जा रही हैं : 'वैराटिपुरि श्री विमल जिनवर सयल रिधि सिधि दायगो, इमि थुणिउ भत्तिहि नियइ सत्तिहि, ते रमड़ जिणि नायको । श्री सयल संघह करण मंगल, दुरिय पाप निकंदणो, श्री जयलाल मुणिंद जंपइ, देहि नाण सुदंसणो ।' जयमन्दिर-आप बड़तपगच्छीय श्री जयप्रभ के शिष्य थे। आपने सं० १५९२ में त्रंबावती में 'तेजसार चौपइ' नामक काव्यकृति तैयार की। इस रचना का श्री मो० द० देसाई ने केवल नामोल्लेख किया है। अन्य विवरण अनुपलब्ध है। १. ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह २. श्री मो० द० देसाई-जै० गु० क० भाग ३ पृ० ५९६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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