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________________ ३७२ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास रचनाकाल और अन्य विवरण इन पंक्तियों में द्रष्टव्य है :'चउरासी अग्गला सइ जु पन रह संवच्छर, सुकुल पष्ष अष्टमी मास कातिग गुरुवासर। हृदय उ.पनी बुद्धि नाम थी गुरु को लीनो, सारद तमइ पसाइ कवित्त संपूरण कीन्हो ।' यह भी अतिशय लोकप्रिय रचना है और इसकी भी अनेक प्रतियाँ प्राप्त होती हैं । 'वैराग्य गीत' में मानव को जीवन में अच्छे कार्य करने की -प्रेरणा दी गई है। बचपन और यौवन के निकल जाने पर वृद्धावस्था में जब मृत्यु आती है तब मनुष्य हाथ मलने लगता है; इसलिए समय रहते अच्छे कम कर लेना चाहिये । 'उदरगीत' में कवि कहता है कि यदि सारा जीवन उदर पूर्ति में ही व्यतीत कर दिया तो यह जन्म व्यर्थ हो गया । इसे ही वैराग्य गीत भी कहा गया है। पंथी गीत ६ पद्यों की और बेलिगीत कुल ४ पद्यों की छोटी-छोटी रचनायें हैं। वैराग्य या उदर गीत भी चार पद्यों की ही रचना है । अन्त में ६ कड़ी का एक गीत भी राग सोरठा में उपलब्ध है।' इनकी कृतियाँ राजस्थानी (पुरानी हिन्दी) मरुगुर्जर की महत्त्वपूर्ण रचनायें हैं जिनमें नैतिक शिक्षा, धर्म, आध्यात्म के साथ लौकिक प्रेम, शृंगार आदि का यथावसर बड़ा रमणीय वर्णन किया गया है। आश्चर्य है कि इन्हें देसाई जी ने जैनेतर के साथ ही 'हीन श्रेणि' का कवि कहा है। लगता है कि उन्होंने इस कवि की सभी कृतियों को बिना देखे ही यह धारणा बना ली या उसके लौकिक शृगार आदि के कारण उन्हें कवि से विरक्ति हुई हो। परन्तु साहित्य के इतिहास ग्रन्थ में साहित्य तत्त्व किसी प्रकार उपेक्षणीय नहीं हो सकता और न इतिहासकार किसी प्रकार का पूर्वाग्रह रखकर ही चल सकता है। इसलिए छीहल की रचनाओं के आधार पर उनके मल्यांकन की आवश्यकता को देखते हुए यह विवरण प्रस्तुत किया गया है । (भट्टारक) जयकीति-आपका समय विक्रम की १६वीं शताब्दी का उत्तरार्द्ध है। इनकी रचनायें 'भवदेव चरित्र' और 'पार्श्व भवान्तर के छन्द' जिन गुटकों में प्राप्त हुए हैं वे १६वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध के लिखे हुए हैं । ये रामकीर्ति के गुरु और 'छंदानुशासन' के कर्ता जयकीति से भिन्न हैं । वे संस्कृत के विद्वान् थे जबकि प्रस्तुत जयकीर्ति की रचनायें मरुगुर्जर में लिखी गई हैं । उक्त दो रचनाओं के अलावा 'ब्रह्मचर्य उपदेश माला' १. डा० ० ० कासलीवाल- महाकवि बुचराज एवं उनके समकालीन कवि. पृ० १३१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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