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________________ मरु - गुर्जर जैन साहित्य ३७१ अति प्रसन्न थीं । उनके यौवन की क्यारी में बहार आ गई थी । उनके इस पक्ष का वर्णन करता हुआ कवि लिखता है. ' मालिन का मुख फूल ज्यउं बहुत विगास करेइ, प्रेम सहित गुंजार करि पीय मधुक रस लेइ । चोली खोल तम्बोलनी काढ्या गात्र अपार, रंग कीया बहु प्रीय सु नयन मिलाइ तार ॥५९॥ इस प्रकार इसमें शृंगार के संयोग और वियोग दोनों पक्षों का विस्तृत वर्णन किया गया है । इसकी रचना फाल्गुन सुदि पूर्णिमा सं० १५७५ त हुई । उस दिन मदनोत्सव ( होलिका पर्व ) मनाया जाता है । यह रचना उसके मादक वातावरण के अनुकूल लिखी गई है । इसकी भाषा के सम्बन्ध में डॉ० शिवप्रसाद सिंह ने लिखा है कि यह व्रजभाषा है किन्तु इस पर मारवाड़ीय राजस्थानी का प्रभाव अधिक है । अन्त में वे स्वयं भी कहते हैं कि 'पंचसहेली री बात' की भाषा राजस्थानी मिश्रित ब्रजभाषा है ।" यह अत्यन्त लोकप्रिय कृति है और राजस्थान के अनेक भंडारों में इसकी नाना प्रतियाँ उपलब्ध हैं । भाषा और शैली की दृष्टि से यह एक उत्कृष्ट रचना है किन्तु इसमें जैन दर्शन या धर्म की छाप नहीं है । सम्भवतः इसलिए श्री देसाई ने इन्हें जैनेतर मान लिया है । बावनी - इसमें नीति उपदेश है । इस पर संस्कृत के सुभाषितों का प्रभाव प्रकट होता है । जैन विद्वान् बावनी संज्ञक काव्य आरम्भ से लिखते रहे हैं । प्रस्तुत बावनी में ५३ छंद नागराक्षरों के क्रम से निबद्ध हैं । प्रारम्भ में मंगलाचरण के पश्चात् पांच इन्द्रियों में उलझे मनुष्य की मछली, हाथी, हिरण, भँवरा और पतंग से तुलना करता हुआ कवि कहता है 'नाद श्रवण धावन्त तजइ मृग प्राण तत्तष्षिण, इन्द्री परस गयंद वास अलि मरइ विचष्षण | रसना स्वाद विलग्गि मीन वज्झइ देखन्ता, लोयण लुबुध पतंग पडइ पावक पेषन्ता । मृग मीन भंवर कुंजर पतंग ए सब विणासइ इवकी, छीहल कहइ रे लोयि इन्दी राखउ अप्प वसि | 2 १. डॉ. शिव प्रसाद सिंह, सूरपूर्वं ब्रजभाषा और उसका साहित्य पृ० १७०-१७१ २. डा० कस्तूरचन्द कासलीवाल – कवि बूचराज एवं उनके समकालीन कवि पृ० १३१ Jain Education International For Private & Personal Use Only / www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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