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२४ मरु-गुर्जर जैन साहित्य
३६९ नन्दन मणिहार संधि सं० १५८७, रतिसार केवली चौपई, महाबल मलयसुन्दरी रास (५१५ गाथा), पंचतीर्थी स्तवन सं० १५९८ और युगमंधर गीत उल्लेखनीय हैं। इनकी नन्दनमणिहार संधि, रतिसार चौपई और महाबल रास की प्रतियाँ श्री अ० च० नाहटा जी के संग्रह में हैं। 'नन्दन मणिहार संधि' की प्रारम्भिक पंक्तियाँ देखिये :'वीर जिणेसर चरण नमेवि, संधि वंधि समरिसु संखेवि, श्री सुधर्म गणधर जिम भाखइ, जंबू गणधर तिमवलि दाखइ। ज्ञाताधर्म कथा तणइ, तेरम अज्झयणि नंदमणियार चरिउ
भणीयउ । गुरु का स्मरण और रचनाकाल इन पंक्तियों में है :
'उवज्झायवर श्री भगति लाभइ, सीस विरचि अति भली।'
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रचनाकाल-'संवत पनरह असी ऊपरि सात अधिक बछरे,
गणि चारुचन्द्रे लहिय पुस्तक मास फागुण मनहरे । - इस उद्धरण से इनकी भाषा शैली का विज्ञ जन अनुमान कर सकेंगे। इनकी रचनाओं में कुछ रास हैं जिनमें केवली रतिसार, मलय सुन्दरी, उत्तम कुमार आदि की कथा के माध्यम से धर्मोपदेश दिया गया है और कुछ स्तवन तथा स्तोत्र आदि हैं ।
छोहल -आप १६वीं शताब्दी के बहुचर्चित कवि हैं। इनका वर्णन राजस्थानी साहित्य के इतिहास ग्रन्थों में तो है ही, हिन्दी के प्रसिद्ध साहित्येतिहासकार आ० रामचन्द्र शुक्ल, मिश्रबन्धु, डॉ० रामकुमार वर्मा, डॉ. शिवप्रसाद सिंह, डॉ० हीरालाल माहेश्वरी और डॉ०प्रेमसागर जैन आदि विद्वानों ने भी अपने इतिहास ग्रन्थों में किया है। इनकी 'पंचसहेली' और 'बावनी' नामक रचनायें अति प्रसिद्ध हैं। आप राजस्थानी कवि हैं किन्तु इनके निवास स्थान आदि का निश्चित जानकारी नहीं है । इनकी भाषा के आधार पर इन्हें शेखावटी या ढ्ढाड़ के आसपास का निवासी समझा जाता है। ये दिगम्बर श्रावक थे। 'लघबेलि' में इन्होंने जिनधर्म की महत्ता का वर्णन किया है किन्तु पता नहीं क्यों श्री देसाई ने इन्हें जैनेतर कवियों में । रखा है । १. श्री अ० च० नाहटा--- राजस्थानी साहित्य का मध्यकाल, परम्परा पृ० ६५ २. श्री मो० द० देसाई-जैन ग० क० भाग ३ प० ५७७-५७८ ३. वही, खण्ड २५० २१२६
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