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________________ ३६६ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास अन्तिम पंक्तियाँ इस प्रकार है :__ 'पास तणउ परिमाण, पढ़इ गुणइ जे सांभलइ, तीह धरि नितु सुविहाणु, चिरकालइ चइऊ भणइ ।३४।' 'ऋषभ स्तोत्र' की भाषा अधिक संगीतमय है, यथा :-- 'इय रिसह जिणेसर भुवण दिणेसर, तिजय विजय सिरिपाल पहो, नयणाहिय सामिय सिवगय गामिय, मणह मणोरह पूरिमहो ।५।' चतुभ ज-आपने सं० १५७६ में 'भ्रमर गीता' लिखा जो 'प्राचीन फागु संग्रह' में प्रकाशित है । नाम इसका फागु नहीं है किन्तु अन्त में 'श्री कृष्ण गोपी विरह मेलापक फागु' लिखा है । इसका छन्दबन्ध भी फागु जैसा ही है । कविता में इसका रचना काल इस प्रकार है 'छिहुतरि कीधु छूटवा मेटवा श्री भगवान' के आधार पर श्री सांडेसरा ने इसका रचनाकाल सं० १५७६ निश्चय किया है । यह रचना भागवत के दशम स्कन्ध के अनुसार रचित उद्धव संदेश जैसी है । उद्धव व्रज से गोपियों का प्रेमपूर्ण उपालम्भ सुनकर लौटे और भाव विह्वल होकर उनकी दशा का मार्मिक वर्णन श्री कृष्ण से किया; यह सब इसमें बड़े सरस ढंग से व्यक्त किया गया है। कवि भले अप्रसिद्ध हों किन्तु रचना काव्यत्व की दृष्टि से उत्तम है । जूनी गुजराती या मरुगुर्जर में भीम कृत रसिक गीता, ब्रह्मदेव कृत भ्रमर गीता और दयाराम कृत . प्रेमरस गीता आदि में उद्धव प्रसंग वर्णित है किन्तु ये फागु नहीं हैं। प्राचीन फाग संग्रह में संकलित ज्ञानगीता के अलावा अन्य रचनाओं नेमिनाथ भ्रमर गीता, पार्श्वनाथ राजगीता तथा यशोविजयकृत जंबूस्वामी ब्रह्मगीता आदि से यह प्रमाणित होता है कि इस प्रकार के फागु काव्य की शैली इस विषय पर पहले से जैन साहित्य में प्रचलित थी। फागु के प्रारम्भ में मदनमुरारी की वंदना और गोपियों की विरह-कातरता सूचित की गई है । अक्र र कृष्ण को रथ पर बैठाकर मथुरा चले, गोपियाँ विलख कर कहती हैं कि यह अक्रूर बड़ा क्रूर है, यथा 'अक्र र नहीं ए क्रू र पापी भाव्यु अचिंत्यु शोभा संतापी, क्रिण म जाउ अम्ह कंठ कांपी विलविलइ विरुहिणी विरह व्यापी । नेह उपायु ति पहलरे, बदल करवा छेह, जल बिना किम रहइ माछली, जीव बिना तिम देह ।१६।' उद्धव के व्रज आने पर गोपियाँ दौड़ पड़ी, कवि कहता है :१. श्री मो० द० देसाई-जै० गु० क. भाग ३ पृ. ५५३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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