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मरु-गुर्जर जैन साहित्य
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कवि ने राजा मानसिंह का उल्लेख निम्नांकित पंक्तियों में किया है— 'भुजवल आपु जु साहस धीर, मानसिंह जग जानिये, ताके राज सुखी सब लोग, राज समान करहिं दिन भोगु ।" " चउहथ (चोथो) - आप सांडेर गच्छ के आचार्य यशोभद्रसूरि की परंपरा धर्मसागरसूरि के शिष्य थे । सं० १५८७ में आपने 'आरामनंदन चोपड़ कृति के प्रारम्भ में सरस्वती की वंदना करता हुआ कवि
लिखी । कहता है
:--
'सरसति सामिणी पय नमी, आराहिस इक चित्त, सातूठी देसि सदा, सुबुद्धि सुमति शुभ चित्त । तत्पश्चात् सांडेर गच्छीय गुरु यशोभद्रसूरि का वंदन किया है, यथा :'गछ सांडेरा मंडणउ, श्री जसोभद्र सुरेन्द्र, जस पय पंकइय सेवता भविक लइ आनंद ।
फिर लिखिमीपुर नामक नगर के वर्णन से कथा का प्रारम्भ होता है । कवि ने कथा के अन्त में अपना, अपने गुरु और रचनाकाल का विवरण भी दिया है, यथा : -
'तास सीस उवज्झायं नामइ नवनिधि थाइ, धर्मसागर तणइ अ, कवियण इम भणइ ओ । आणी आनंद पूरि दुख दाह करि दूरि, हरष धरी छणइ अ, चउहथ इम भणइ अ ।' रचना काल 'संवत पन्नर प्रमाणि सत्यासीयइ इम जाणी, कीधऊ अ चरीय, महीयलि विस्तरी अ । '2
इसकी काव्यभाषा मरुगुर्जर पर राजस्थानी का प्रभाव अधिक है । काव्यत्व की दृष्टि से यह एक साधारण कोटि की रचना प्रतीत होती है ।
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चउआ - इनकी दो रचनाओं - पार्श्वनाथ विनती ( ३४ कड़ी) और सिद्धचक्र (ऋषभ ) स्त० (५ कड़ी) का उल्लेख श्री मो० द० देसाई ने किया है किन्तु कवि का विवरण नहीं दिया है। पार्श्वनाथ विनती का प्रारम्भ इन पंक्तियों से हुआ है :
·
'वरसह लाख इग्यार, इन्द्रिइ पास जिण पूजिआ, कोइ न जाणइ पार, आगइ से अनागता ।'
१. डॉ० प्रेमसागर जैन- हिन्दी जैन भक्ति काव्य पृ० ७२ २. श्री मो० द० देसाई - जैन गु० कवि भाग ३ पृ० ५७८
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