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________________ मरु-गुर्जर जैन साहित्य ३६५ कवि ने राजा मानसिंह का उल्लेख निम्नांकित पंक्तियों में किया है— 'भुजवल आपु जु साहस धीर, मानसिंह जग जानिये, ताके राज सुखी सब लोग, राज समान करहिं दिन भोगु ।" " चउहथ (चोथो) - आप सांडेर गच्छ के आचार्य यशोभद्रसूरि की परंपरा धर्मसागरसूरि के शिष्य थे । सं० १५८७ में आपने 'आरामनंदन चोपड़ कृति के प्रारम्भ में सरस्वती की वंदना करता हुआ कवि लिखी । कहता है :-- 'सरसति सामिणी पय नमी, आराहिस इक चित्त, सातूठी देसि सदा, सुबुद्धि सुमति शुभ चित्त । तत्पश्चात् सांडेर गच्छीय गुरु यशोभद्रसूरि का वंदन किया है, यथा :'गछ सांडेरा मंडणउ, श्री जसोभद्र सुरेन्द्र, जस पय पंकइय सेवता भविक लइ आनंद । फिर लिखिमीपुर नामक नगर के वर्णन से कथा का प्रारम्भ होता है । कवि ने कथा के अन्त में अपना, अपने गुरु और रचनाकाल का विवरण भी दिया है, यथा : - 'तास सीस उवज्झायं नामइ नवनिधि थाइ, धर्मसागर तणइ अ, कवियण इम भणइ ओ । आणी आनंद पूरि दुख दाह करि दूरि, हरष धरी छणइ अ, चउहथ इम भणइ अ ।' रचना काल 'संवत पन्नर प्रमाणि सत्यासीयइ इम जाणी, कीधऊ अ चरीय, महीयलि विस्तरी अ । '2 इसकी काव्यभाषा मरुगुर्जर पर राजस्थानी का प्रभाव अधिक है । काव्यत्व की दृष्टि से यह एक साधारण कोटि की रचना प्रतीत होती है । 111 चउआ - इनकी दो रचनाओं - पार्श्वनाथ विनती ( ३४ कड़ी) और सिद्धचक्र (ऋषभ ) स्त० (५ कड़ी) का उल्लेख श्री मो० द० देसाई ने किया है किन्तु कवि का विवरण नहीं दिया है। पार्श्वनाथ विनती का प्रारम्भ इन पंक्तियों से हुआ है : · 'वरसह लाख इग्यार, इन्द्रिइ पास जिण पूजिआ, कोइ न जाणइ पार, आगइ से अनागता ।' १. डॉ० प्रेमसागर जैन- हिन्दी जैन भक्ति काव्य पृ० ७२ २. श्री मो० द० देसाई - जैन गु० कवि भाग ३ पृ० ५७८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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