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________________ मरु-गुर्जर जैन साहित्य बीच-बीच में वस्तुबंध, साटक और संस्कृत के वणिक छन्द तथा प्राकृत की गाथायें प्रयुक्त हैं जिनका उद्धरण देने से विवरण अधिक दीर्घ हो जायेगा। धणचन्द-आपने 'चित्रसेन पद्मावती' काव्य । ११०२ गाथा) सोलहवीं शताब्दी में लिखा जिसका निश्चित रचनाकाल एवं विवरण नहीं प्राप्त हो पाया है। कवि के सम्बन्ध में भी विवरण अप्राप्त है। चतरुमल-आप अपेक्षाकृत अल्पज्ञात कवि हैं। आपके पिता श्री जसवंत गोपाचल (ग्वालियर) के श्रीमाल जाति के दिगम्बर जैन श्रावक थे, इन्होंने सं० १५६९ से ही गीत लिखना प्रारम्भ किया। इनके लिखे चार उपलब्ध गीतों में सबसे बड़ी रचना 'नेमीश्वर उरगानौ' (सं० १५७१ भादो वदी पंचमी, सोमबार) ४५ पद्यों की है। इसकी काव्य विधा 'उरगानो' एक नवीन एवं विशिष्ट विधा है। इस उरगानी में नेमि-राजुल के विवाह सम्बन्धी घटना का वर्णन किया गया है। इसमें ग्वालियर के तत्कालीन तोमर वंशीय राजा मानसिंह का उल्लेख है। उन दिनों वहाँ जैनधर्म का बड़ा प्रभाव था। इनके समकालीन अपभ्रंश के महाकवि रइध ने भी तोमर राजाओं की शान-शौकत का वर्णन अपनी रचनाओं में किया है, लेकिन आश्चर्य है कि चतरुमल ने रइध का कहीं नामोल्लेख तक नहीं किया है। इनके अन्य गीतों के शीर्षक 'गाड़ी के गड़वार की', 'आईति बाबा वारी के जईयौ' आदि में कवि के नाम की छाप मिलती है। 'भनइ चतरु श्रीमारु' या 'श्रावग सुणह विचारु, चतरु यों गावहिर्ग' आदि पंक्तियों में लेखक ने अपने नाम का प्रयोग किया है । ____'नेमिश्वर उरगानौ' में उरगानो का अर्थ कवि ने 'गुन विस्तरी' अर्थात् गुण का विस्तार करने वाला काव्य बताया है। इसमें मंगलाचरण के पश्चात् नारायण श्रीकृष्ण के पराक्रम की प्रशंसा, जरासंघ पर बिजय, राज्यसभा में नेमि का पदार्पण, श्री कृष्ण द्वारा नेमिकुमार की प्रशंसा, श्रीकृष्ण द्वारा उग्रसेन की कन्या राजीमती का नेमिकुमार से विवाह के लिए तैयारी करना, बारात पहुँचने पर एकत्र पशुओं को देखकर नेमि का वैराग्य भाव जागना, राजुल का करुण क्रन्दन, राजुल का भी नेमि के पीछे-पीछे शिखर पर चढ़ना, संयमपूर्वक नेमि की सेवा करना, तप करना और इसी प्रसंग में बारहमासे द्वारा हर महीने में राजुल की विरह वेदना का वर्णन, और अन्त में दीक्षा ग्रहण आदि का मार्मिक कथन किया गया है। यह शान्तरस पूर्ण १. श्री अ० च० नाहटा-जै० म० गु० क० पृ० १६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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