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________________ मरु-गुर्जर जैन साहित्य ३६१ जैन साहित्य में यशोधर की कथा अतिलोकप्रिय है । सर्वप्रथम उद्योतन सूरि ने सं० ८३६ में रचित अपनी कुवलयमालाकथा में प्रभंजन कवि कृत यशोधर चरित का उल्लेख किया है किन्तु वह अनुपलब्ध है । उपलब्ध रचनाओं में हरिषेण कृत बृहत्कथा कोष (सं० ९८९) में यशोधर का चरित सबसे पुराना है । तब से लगातार यशोधर चरित पर आधारित रचनायें प्राप्त होती रही हैं । इनमें पुष्पदन्त और रइधू की अपभ्रंश में, सोमदेव कृत यशस्तिलक चम्पू संस्कृत में और वादिराज, सकलकीर्ति, ब्रह्मजिनदास, देवेन्द्र और जिनहर्ष आदि की मरुगुर्जर या पुरानी हिन्दी में यशोधर चरित सम्बन्धी अनेकों रचनायें उपलब्ध हैं । प्रस्तुत रचना का आधार वादिराज कृत यशोधर चरित है । इसमें ५३७ छंद हैं । यह सर्गों और संधियों में विभक्त नहीं है बल्कि आद्यान्त कथा अविराम चलती है । बीच-बीच में संस्कृत के श्लोक और प्राकृत की गाथायें हैं । यह भ० ज्ञानभूषण कृत 'आदीश्वर फाग' की शैली पर लिखी रचना है । इसमें अवंती के राजा यशोधर और उसकी रानी अमृता, जो किसी कुबड़ े गायक पर आसक्त थी, की कथा है । रानी अमृता के कपटाचरण के कारण राजा यशोधर को वैराग्य हुआ और आटे का कुक्कुट बलि करने के प्रायश्चित्त स्वरूप नाना भव-भवान्तरों में भ्रमण के पश्चात् उसने मुक्ति प्राप्त किया इसमें वहीं कथा कही गई है। कथा रोचक, वर्णन सरस एवं मनोहर हैं । प्रमुख पात्रों में भैरवानन्द का वर्णन करता हुआ कवि कहता है : 'भस्म चढ़ाई मुद्राकान, अनही बुझ कहै कहान दीरघ जटा चढ़ाये भंग, नयन धुलावे वंदन रंग । गौर वरण मनो पून्यो चंद, प्रगट्यो नाम भैरवानन्द | 2 श्मशान के बीभत्स दृश्य का वर्णन कवि ने इन पंक्तियों में किया है। 'संग सहित मुनि गयो मसान, मरे लोग डहिहिं जहिथान, मुंड रुंड दीसह बहुपरो, कृमि कीलालवि घृणा भरे । ६० ।' - काव्य सुखान्त है । सैकड़ों जीवों की बलि चढ़ाने वाला भैरवानन्द भी अन्त में अपने पापों का प्रायश्चित्त करके स्वर्ग प्राप्त करता है । इसमें प्रमुख रूप से दोहा और चोपाई छन्द का प्रयोग किया गया है। इसका मंगलाचरण देखिये : १. डॉ० कासलीवाल - कविवर वृचराज एवं उनके समकालीन कवि पृ० १६० For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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