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मह गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
'श्री ब्रह्मचार जिणदास तु परसाद तेह तणेए, मनवंछित फल होइतु, बोलीई किस्युं धणुए । ३६ । गुणकीरति कृत रास तु, विस्तारु मनि रलीए, बाई धनश्री ज्ञानदास नु, पुण्यमती निरमलीए । ३७। गावउं रली रमि रासतु, पावउ सिद्धि वृद्धि ए । मनवांछित फल होइ तु संपजि नवनिधिए । ' इस रास में सीताराम का चरित्र जैन परम्परानुसार वर्णित है ।
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गुणमाणिक्य शिष्य -- ब्रह्माण गच्छ के बुद्धिसागरसूरि, विमलसूरि, गुण माणिक्यसूरि के किसी अज्ञात शिष्य ने 'हरिश्चन्द्र रास' की रचना की है । ब्रह्माण गच्छ में कई बुद्धिसागर और विमलसूरि हो गये हैं । इनमें से सं० १५८० में बुद्धिसागर के पट्टधर विमलसूरि गुणमाणिक्य के गुरु रहे होंगे । अतः यह कवि १६वीं शताब्दी के अन्तिम चरण का हो सकता है । इसके प्रारम्भिक पद्यों में गुरु परम्परा इस प्रकार बताई गई है। सरसति सामणि वीनवू त्रिभुवन जगणी माय, रचू चरित्र हरिश्चन्द्र तणू ब्रह्म पसाय | कृपा करू मुझ स्वामिनी वंछित दायक देव, ओक मनु नतु ऊलगु, सदा करू तम्ह सेव । सील संयम तप निर्मलु बुद्धिसागर गुरु जाणि । गछ ब्रह्माण गुणनिलु श्री विमलेन्द्र बखाणि, तास तणउ शिष अतिचतुर गुणमाणिक गुरु जोय । तेह तणइ सुपसाउलउ कवित करू ते सोय । 2
इसकी प्रति के अन्तिम पन्ने न मिल पाने के कारण इसका रचना काल और अन्य विवरण उपलब्ध नहीं है ।
गौरवदास - सं० १५८१ में फफूंद ( उ० प्र०) निवासी कवि गौरवदास ने 'यशोधर चरित्र' लिखा । हिन्दी भाषी क्षेत्र का निवासी होने के कारण इनकी काव्य भाषा में हिन्दी प्रयोगों का अनुपात स्वभावतः अधिक है अतः मिश्रवन्धु विनोद में इसकी प्रसिद्ध रचना यशोधर चरित्र को हिन्दी की कृति बताया गया है । गौरवदास संस्कृत, प्राकृत के भी अच्छे जानकार थे । आपने कैलइ के सम्पन्न श्रावक थेधु साह के आग्रह पर यह रचना की ।
१. डा० क० च० कासलीवाल -- राजस्थान के जैन संत पृ० १८६ २. श्री मो० द० देसाई - जै० गु० क० भाग १ पृ० १७२
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