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________________ मरु-गुर्जर जैन साहित्य ३५७ टीप चौपइ सं० १५९७ की है अतः आपको १६वीं शताब्दी में परिगणित किया गया है। इसके रचना-काल का कवि ने इस प्रकार उल्लेख किया है : 'जाव जीवर्भक छइ, सुविसह मूल सुरम्म, पन्नर सत्ताणवइ लद्ध मइ, सुगुरु पासि गहि धम्म ।८३। रचना का प्रारम्भ कवि ने इस प्रकार किया है : 'पहिलूप्रणिमसु जिनवरु , जिनशासन सार, सहिगुरु वंदी व्रतवार, पभणिसु सविचार । व्रत विना जगि सयल नाम अविरति पभणीजइ, चउदराज महि वस्तु अह महीयां मसि लीजइ ।' रचना के अन्त में कवि ने अपना नाम दिया है किन्तु गुरु परम्परा का उल्लेख नहीं किया है, यथा :-- 'मनि वचनि काया तण, जे छइ बहु व्यापार, तेहथिकू नवि ऊसरू जिम हुइ जयजयकार । नियम भंग अवं करू, नीवी न पंच्चक्खाण, जन गजपति भालइ कहइ, इम पालउं जिन आण ।८८ इसमें वारव्रत का माहात्म्य वर्णित है। इनकी दूसरी रचना 'जिनाज्ञा हंडी' (अंचलगच्छनी हंडी सं० १६१०) के आसपास सिरोही नगर में लिखी गई थी। इसकी पहिली ढाल में जिन प्रतिमा और जिनपूजा का वर्णन किया गया है । दूसरी ढाल में केदारा राग में साधु-श्रावकों का धर्म बताया गया है। इसके प्रारम्भ की पंक्तियाँ इस प्रकार है : 'पंथ नहीं वली साध नो रे, मालारोपण केरो, उपधान नाम लेइ करीरे काई करो भव फेरो। आण सहित जे करणी कीजे ते सुखदायक दीसे, कहि गजलाभ मुझ आज्ञा ऊपरि हरये हयडु हीसरे। इसमें आगे श्रावकों का सामायिक व्रत बताकर पंचपर्वी सम्बन्धी चर्चा की गई है। इसका विषय धार्मिक एवं साम्प्रदायिक है। भाषा पर गुजराती प्रभाव स्पष्ट रूप से अधिक है। १. श्री मो० द० देसाई-जै० गु० क. भाग ३ पृ० ६३०-६३१ २. वही ३. वही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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