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मरु-गुर्जर जैन साहित्य आपके किसी अन्य भक्त शिष्य 'कनक' ने क्षेमराज गीत लिखा है जो ऐतिहासिक जैन काव्यसंग्रह में प्रकाशित है।
खोमो या खीमा-आप १६वीं शताब्दी के प्रसिद्ध कवि प्रतीत होते हैं क्योंकि ऋषभदास ने अपने ग्रन्थ कुमारपाल रास (सं० १६७०) में इनका सादर स्मरण किया है :
"आगि जे मोटा कविराय, तास चरण रज ऋषभाय, लावण्य लीधों खीमो खरो, सकल कविनी कीरति करो।५३।" इनकी तीन रचनायें प्रसिद्ध हैं एक शत्रुजय चैत्य परिपाटी, जो प्रकाशित है। दो छोटे गीत हैं---जीवदयागीत और जयणागीत । इनका परिचय आगे दिया जा रहा है। शत्रुजय चैत्य प्रवाडी या परिपाटी प्रसिद्ध तीर्थ शत्रुजय के स्तवन में लिखी गई है। इसकी प्रारम्भिक पंक्तियाँ इस प्रकार हैं :--
‘आराहूँ सामिणी सारदा, जिममति तूठी दिउ मति सदा, श्री सेत्रुज तीरथ वंदेवि, चैत्र प्रवाडी रचसि संषेवि । पाली ताणंइ प्रणम् पास, जिम मनि वंछित पूरइ आस,
ललतासुर वंदू जिनवीर, सोइ सायर जिम गुहिर गंभीर ।' इसके अन्त में कवि का नाम है किन्तु अन्य विवरण नहीं हैं, यथा :'अह स्वामी तुम्ह गुण जेतला, मइकिम बोलाइ तेतला, तू गुण रयणायर सम होइ, अह संक्षा नवि जाणंइ कोइ । जे ताहरा गुणं गाई सार, तेह घरि मंगल जय जयकार, हूं तुम्ह नामिइ नितु भांमणइ, बे कर जोड़ी खीमु भणइ ।३२। जीवदया गीत मात्र पाँच छंदों की छोटी रचना है जो राग धन्यासी में बद्ध है । इसकी चार पंक्तियाँ उदाहरणार्थ प्रस्तुत की जा रही है :
'तरण पणिइ जोवन-मदिइ, हो तरीय चडी वनि जाइ, त्रस जीव विणासरी, इम खटवट हो नीगमीइ काइ। खट दरशन मति अह छइ, जोउ समृत विचार,
खीमराज साचउ कहि, धरमह धरि हो जीवदया सार । १. श्री मो० द० देसाई -- जै० गु० क० भाग १ पृ० १६१ २. वही ३. वही, भाग ३, पृ० ४९४-४९६
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