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________________ ३५२ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास ___फलद्धि पार्श्वनाथ (गा० २५) के आदि और अन्त की पंक्तियाँ प्रस्तुत हैं :आदि :- 'सुगुरु शिरोमणि श्री गोतम गरुयउ गणधार, रासरचिसु रलियामणउ श्रवणि सूणतां हो हरष अपार ।१। अन्त :-'मलिय महाजन मनि रली, पासनउं रास वसंति रमति । तिहि धरि नवनिधि संपजइ, खेमराज मुनिवर पभणंति ।२५।'' श्री नाहटा ने 'जै० मरु-गुर्जर कवि' के पृ० १६ पर 'नेमिरास' गाथा ३३ सं० १५९६ का भी उल्लेख किया है किन्तु कोई विवरण नहीं दिया है। इस प्रकार आप मरुगुर्जर के एक महत्वपूर्ण लेखक हैं जिन्हें खरतरगच्छीय एवं तपागच्छीय विद्वान् अपने गच्छ का सिद्ध करने की चेष्टा करते हैं। इनकी सभी रचनाओं का कथासार या भाषा संबंधी उदाहरण देना प्रस्तुत ग्रन्थ की सीमा में सम्भव नहीं है। मंडपाचल चैत्य परिपाटी या (मांडवगढ़. चै०) ऐतिहासिक रचना है जो प्रकाशित भी है, उसकी कुछ पंक्तियाँ देना अपेक्षित है । परिपाटी नामक रचनायें चैत्यों और तीर्थों की यात्रा के अवसर पर संभवतः यात्रियों द्वारा स्तुति रूप में गाने के लिये लिखी जाती थीं क्योंकि कवि लिखता है :-- ___ 'फागबंध जे पुन्यवंत नारी नर गावइ, खेमराज गणि भणइ तेइ यात्रा फल पावइ । इसके प्रारम्भ की पंक्तियाँ इस प्रकार हैं :'पास जिणेसर पय नमिय, कामिय फल दातारो, फागबंधि हउ संथुणिसु जिणवर बिंब अयारो। इणिपरि चैत्य प्रवाडी रची मांडवगढ़ि हरिसिही, संचीय सुकृत भंडार सुगुरु सोमध्वज गणि सीसहि ।' खेमराज स्वयम् उच्चकोटि के कवि थे और इनके शिष्यों में भी 'खेमकुशल' के कवि होने की सूचना मिलती है । आपने सं० १५४१ में 'श्रावक विधि चौ०' प्रायः उसी विषय पर लिखी जिसपर इनके गुरु खेमराज ने लिखा था । इसकी प्रति भी अ० च० नाहटा जी के संग्रह में उपलब्ध है। १. श्री अ० च० नाहटा--जै० म० गु० क० पृ० १३१-१३२ २. श्री० मो० द० देसाई-जै० गु० के० भाग ३ पृ० ५०० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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