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________________ ३४९. मरु-गुर्जर जैन साहित्य इनका विषय सर्वत्र एक जैसा है किन्तु भाषा शैली के उदाहरणार्थ कुछ पंक्तियाँ आगे उद्ध त की जा रही हैं सर्वप्रथम नागपुर मंडन शांति जिन स्तवन की अन्तिम चार पंक्तियाँ देखिये : 'इम तविऊ निरमल सकल केवल कुशल मंगलदायको, बहुभाव भेदी तत्ववेदी सुख प्रवेदी नायगो। गुरु जिनवर नमइ असुर श्री विजयदान सूरीसरो, श्री हर्षसंयम चरण सेवक कुशलहर्ष कृपा करो। इसकी भाषा हिन्दी के काफी करीब है, इनकी दूसरी रचना 'नेमिनाथ स्तवन' की भाषा भी इसी प्रकार सरल राजस्थानी हिन्दी है, यथा : 'इम तव्यु त्रिभुवन सजन पावन त्रिजग जीवन जुगगुरो, श्री नेमि जिनवर सयल सुखकर नालंदपुर मंडणवरो। नितु नमइ सुरनर असुरनर श्री विजयदान सूरीसरो, श्री हरषसंजम चरण सेवक, कुशलहर्ष कृपा करो।६६ ।' 'शत्रुजय स्तवन' का आदि पद्य इस प्रकार है :'सरस वाणी दिऊ सरसती अ, वरसती वचन विलास कि, आस पुरऊ कवियण तणी, गायसीं ऋषभ जिणंद । फलवद्धि मंडण श्री पार्श्व स्तवन की भाषा अनुप्रास युक्त, प्रवाहमय और काव्योचित है, यथा : इम पास आस प्रकाश वासन फलवद्धि मंडणवरो, श्री हर्षसंयम चरण सेवक कुशलहर्ष कृपा करो।६८।' धीरे-धीरे स्तोत्र और स्तवन की भाषा में पूजा-पाठ सम्बन्धी रागमयता और तल्लीनता के लिए अपेक्षित सहज प्रवाह का विकास होने लगा था। उदाहरण स्वरूप 'महावीर स्तवन' की दो पंक्तियाँ उद्ध त करके अपने कथन का उपसंहार करता हूँ, यथा : 'सांतिकरण गुणरयण निवास, सफल करी भवीअण जिण आस, शांति नमुकृत जगदानन्द, जोधपुरावनि मंडण चंद।" हम यह भी देखते हैं कि जो कवि गुजरात, राजस्थान या हिन्दी भाषी क्षेत्र का है उसकी भाषा में क्रमशः अब इन भाषाओं का स्वरूप स्पष्ट रूप १. श्री मो० द० देसाई-जै० गु० क० भाग १ पृ० १६५, भाग ३ पृ० ६२१ २. वही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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