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मरु-गुर्जर जैन साहित्य
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था। इन्होंने संस्कृत और प्राकृत में रचनायें की हैं । कीर्तिहर्ष को भी लिखने की प्रेरणा अपने गुरु कक्कसूरि से प्राप्त हुई होगी। ____ 'सनत्कुमार चौ०' का रचनाकाल कवि ने स्वयम् दिया है। इसी के आसपास की रचना कुलध्वजकुमार रास' भी होगी। सनत्कुमार चौ० के प्रारम्भ में कवि ने पार्वजिन और सरस्वती की वंदना की है, यथा
'स्वामी जिरायुल्लि निवास, मनि समरतां पूरइ आस, पय सेवइ अणुदिणु धरणिंद, पहिलुप्रणमिसु पास जिणंद । सरसति सामिनि करु पसाइ, कासमीर मुख मंडन माइ, नाम जपी केसीय गणधार, चरीय भणु श्री सनत्कुमार ।' कवि ने रास के अन्त में रचनाकाल और गुरु परम्परा का उल्लेख किया है, यथा :
'श्री कक्कसूरि गुरुआ गुरुराय, मनसुद्धिइ तसु प्रणमी पाय । सार श्रीरंग तणई आग्रहई रचिऊ प्रबन्ध भवीअण संग्रहइ । पन्नर ओकावन्न मझारि, काति पून्निमे दिन गुरुवारि । कवि कीर्तिहर्ष मनिधरी आणंद, रचिउ प्रबन्ध जन श्रवणानन्द । इसकी भाषा सुबोध मरुगुर्जर है।
कुशलसंयम-आप तपागच्छीय कुलधीर के शिष्य थे। आपने सं० १५५५ में 'हरिबल रास' की रचना की । कुलधीर आचार्य हेमविमल सूरि की परम्परा में थे । हेमविमल सूरि को आचार्य पद सं० १५४८ में प्राप्त हुआ था और उनका स्वर्गवास सं० १५६८ में हुआ। यह रचना इसी अवधि में हुई होगी। रचना की अन्तिम पंक्तियों से पता चलता है कि कुलधीर
और कुलवीर दोनों हेमविमल सूरि के शिष्य और आपस में गुरुभाई थे। सम्बन्धित पंक्तियाँ देखिये :'तपगच्छि श्री गुरु अविचल भांण, मानइ षट्दर्शन जसु आण, अभिनव गोयम स्वामि समान, श्री हेमविमलसूरि महिमा निधान ।
तास सीस पंडित कुलवीर, बीजे बंधव श्री कुलधीर ।'3 १. श्री मो० द० देसाई-जै० गु० क. भाग १ पृ० ९१-९२ और भाग ३
पृ० ५२१ २. वही ३. वही भाग १ पृ० १२९ और भाग ३ प० ५६३ और १४९३
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