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३४६ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
'जेतां सर्व अनंत दीसइ, दीसइ जिनधर्म साररे,
करम सी मणइ अरे जीवडा, दुधर छोड़ेबउ भवभाररे ।१५।'' कीरति - आप पूनिम गच्छ के श्री विजयचन्द्र सूरि के शिष्य थे। आपने 'आराम शोभा रास' की रचना सं० १५३५ आश्विन पूर्णिमा को की है। रचना का प्रारम्भ कवि सरस्वती की वंदना से करता है, यथा
'सरसति सामिणि वीनबू, मांगु निरमल बुद्धि, कवित करिस सोहामणू साँभलता सुख वृद्धि ।१। आराम शोभा नारी भर्ला, जाणइ सयल संसार,
पुण्यइ ते गिरुइ हुई, बोलिसु तासु विचार ।२। आगे जंबूद्वीप स्थित पाडलीपुर नगर और आराम शोभा नारी की कथा कही गई है। इसमें गुरु परम्परा का वर्णन करता हुआ कवि बताता है कि पूनिमगच्छ के रामचन्द्र सूरि के शिष्य पुण्यचन्द्र सूरि के पश्चात् विजयचन्द्र सूरि बड़े प्रभावशाली साधु थे। कवि उन्ही विजयचन्द्र सूरि का शिष्य है । रचनाकाल का उल्लेख निम्न पंक्तियों में हुआ है :
'संवत पंनर पांत्रीसु जाणि, आसोइ पूनमि अहि नाणि, गुरुवारइ पक्ष नक्षत्र होई, पूरब पुण्य तणां फल जोई। कर जोड़ी कीरति प्रणमइ, आराम शोभा रास जे सुणइ ।
भणइ गुणइ जे नर नि नारी, नवनिधि बलसइ तेहघरवारि ।' श्री अ० च० नाहटा को इसका विवरण डॉ० भोगीलाल सांडेसरा से प्राप्त हुआ।
कीतिहर्ष-आप श्री कक्कसूरि के शिष्य थे। आपने कार्तिक शुदि १५ गुरुवार सं० १५५१ को 'सनत्कुमार चौपइ' की रचना की। इसमें २३३ गाथायें हैं। इनकी दूसरी रचना 'कुलध्वज कुमार रास' भी हो सकती है जिसकी चर्चा 'कक्कसूरि शिष्य' के नाम से पहले की जा चुकी है। उपकेश गच्छीय कक्कसूरि की धातु प्रतिमा पर सं० १४९९ से सं० १५२५ की अवधि अंकित है । इनकी पट्टावली से पता चलता है कि इन्हें सं० १४९८ में आचार्य पद प्राप्त हुआ था। इस अवसर पर चित्तौड़ में महोत्सव हुआ १. श्री मो० द० देसाई-जै० गु० क० भाग ३ पृ० ४९२-४९३ २. श्री अ० च० नाहटा-जै० म० गु० कवि पृ० १२७-१२८
वही
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