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________________ मरु-गुर्जर जैन साहित्य ३४५ सम्बन्ध में निश्चित सूचनायें नहीं हैं, फिर भी श्री देसाई के आधार पर इनके रचनाओं का विवरण इस शताब्दी के कवियों के साथ प्रस्तुत किया जा रहा है। ___ चौबीसी-चौबीस तीर्थङ्करों की वंदना में चौबीसी लिखने की बड़ी प्रचलित परिपाटी जैन लेखकों में मिलती है । प्रस्तुत चौबीसी की प्रारम्भिक पंक्तियाँ इस प्रकार हैं : 'साहिबा बालेसर अरिहंत के निसुणो विनती रे लो, ___ ससनेहा गुणवंत के हीयडे जे हती रे लो० सा।' अन्तिम पंक्तियाँ 'तुझ गुण गाऊ कथारसे में समकित गुण दिपाव्यो रे, कवियण जगमां जीतना यण गुहिर निसांण जाव्या रे, वीर जिननेरे जाऊं भामणउ ।' पाँच पांडव संज्झाय-यह छोटी कृति है, इसमें पाँच पाण्डवों की संक्षिप्त कथा है। इसकी प्रथम पंक्ति आगे उद्धृत की जा रही है : 'हस्तिनापुर वर भलु तिहां राजा पांडू सार रे। इसकी अन्तिम पंक्तियाँ इस प्रकार हैं : "श्री हीरविजय सूरि गछधणी, तपगछनो उद्योतकार रे, कर जोड़ी कवियण मुझ आवागमण निवारो रे।। मुझ आवागमण निवारो पंडव पंच वंदता मनमोह रे।' तेतलीपुत्र रास' और 'अमरकुमार रास' का निश्चय न होने के कारण उनके विवरण की यहाँ अपेक्षा नहीं है। कवि की भाषा पर गुर्जर प्रभाव परिलक्षित होता है। करमसी-आपने सं० १५३५ में एक लघु रचना 'वैराग्य कुल' (१५ गाथा) लिखी जिसका जैनयुग पु० ५ पृ० ४७३-४७७ में प्रकाशन हुआ है। इसका प्रथम छन्द इस प्रकार है : जीवतणी गति जोइ अ, हियलइ कांइअ न थाइरे, । करम बंधनि जीव अवतरइ, कर्मनि बंधऊ जाईरे ।१।' इसमें कर्म सिद्धान्त की अनिवार्यता दिखाकर जीव को मोह से मुक्ति दिलाने का प्रयास कवि ने किया है। इसकी अन्तिम पंक्तियाँ भाषा के नमूने के लिए पस्तुत हैं :१. श्री मो० द० देसाई-जो० गु० क. भाग १ पृ० १५९ और भाग ३ ५० ६१३ २. वही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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