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________________ ३४४ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास इसके अन्त के दो पद्य भाषा के नमूने के रूप में प्रस्तुत है - 'श्री जेसलमेर मंडण पाँस, पूजतां परइ मन आस, तसु प्रभाव करिउ संधि वंधउ, श्री जिनसमुद्रसूरि संनिहयइ ।६४। अह सम्बन्ध अमीयमय वाणी, बोलइ वीर जिणेसर नाणि, अणुतरवाइ नवम अंगइ, उवज्झाय कल्याणतिलक मनरंग इ ।६५।' आ० जिनसमुद्रसूरि की पदस्थापना सं० १५३० और स्वर्गवास सं० १५५५ में हुआ था अतः इसका रचनाकाल सं० १५५० के आसपास होना चाहिये । 'मृगापुत्र संधि' की आरम्भिक और अन्तिम पंक्तियाँ भी आगे प्रस्तुत की जा रही हैं--- आदि 'प्रणमीय वीर जिणेसर पाया, जसु सेवइ सुरवर नरराया, ___ मीयापुत्त कहिस हूँ चरित्त, संधि संबंधि समरिसु पवित्त ।१। अन्त 'अह प्रबन्ध उमसमरस भरीयउ, उत्तर उज्झयण थकी उद्धरिउ । श्री जिनसमुद्रसूरि सुसीसइ, कहइ कल्याणतिलक सुजगीसइ।" कल्याणतिलक उपाध्याय प्राकृत और मरुगुर्जर भाषाओं के सुविज्ञ विद्वान् एवं रचनाकार थे । गद्य और पद्य में समान रूप से रचना करने में कुशल थे । उनकी भाषा स्वाभाविक बोलचाल की मरुगुर्जर है जिसमें उन्होंने धन्ना और मृगापुत्र के जीवन चरित्र के माध्यम से जैनधर्म का संयम और तप सम्बन्धी सन्देश रोचक ढंग से प्रस्तुत किया है। कवियण -'तेतलीपुत्र रास (सं० १५९५) के रचनाकार का नाम श्री मो०द० देसाई ने कवियण लिखा है। कवियण नामक कई कवि मिलते हैं। यह कवियों के लिए सामान्यतया प्रयुक्त होने वाला शब्द है। इसलिए ठीक नहीं मालूम कि वस्तुतः यह किसी व्यक्ति का नाम है या सामान्य उपाधि है। जो हो; प्रस्तुत कवि की 'चौवीसी,' पांचपांडव संज्झाय, तेतली पुत्र रास और 'अमरकुमार रास' नामक रचनाओं की सूचना श्री देसाई ने जै० ग० क० भाग १ में दिया है, लेकिन भाग ३ में उन्होंने पूर्व सूचना में सुधार करके कहा है कि 'तेतली पूत्र रास' के कर्ता सहजसुन्दर हैं, इसे कवियण की रचनाओं में से निकाल देना चाहिये। प्रस्तुत कवियण हीर विजय सूरि के समकालीन हैं और इनका रचनाकाल सं० १६५२ से पूर्व भी हो सकता है । सारांश यह कि इस कवि के नाम, रचनाओं की संख्या और रचनाकाल के १. श्री मो० द० देसाई-जै० गु० क० भाग ३ पृ० ५१९ २. वहीं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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