SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 358
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मरु-गुर्जर जैन साहित्य ३४१ कमल मेरु - आप आँचल गच्छ के विद्वान् लेखक थे । आपने सं० *१५९४ ज्येष्ठ शु० ३ बुद्धवार को कविंदा में 'कलावती चौ०' की रचना की । रचनाकाल तथा स्थान का उल्लेख निम्नलिखित पंक्तियों में देखिये :'संवत पनर उहाणी सार, जेठ सुदि तीज बुद्धवार, श्री विधिपक्ष गच्छ उदार, नयर श्री कविंदा मझार, वाचक श्री कमलमेरु पासउ, विरच्यो कवि मन धरि उछाहउ ।'' इसमें 'सती कलावती' का पवित्र चरित्र उदाहरणस्वरूप प्रस्तुत करके कवि ने साध्वी नारियों का आदर्श सरल मरुगुर्जर भाषा में प्रस्तुत किया है । कल्याणचन्द्र - आप खरतरगच्छीय आचार्य कीर्तिरत्नसूरि के शिष्य 'थे । इन्होंने अपने गुरु की जीवनी पर आधारित ५४ पद्यों की एक रचना 'श्रीकीतिरत्नसूरि विवाहलउ' लिखी है। इसमें कीर्तिरत्नसूरि के जन्म से लेकर स्वर्गवास तक का संवतोल्लेख सहित वृत्तान्त दिया गया है। दीक्षा कुवारी (संयमश्री) के साथ कीर्तिरत्नसूरि के विवाह का रूपक मुख्य रूप से वर्णित होने के कारण इसे 'विवाहलउ' कहा गया है। जब देल्हकुमार (कीर्ति रत्नसूरि का जन्म नाम) अपनी माँ के पास दीक्षा लेने की अनुमति लेने जाता है तो उसकी माँ उसे अनेक प्रलोभन देकर दीक्षा से विरक्त करना चाहती है । कवि लिखता है : 'लेसु तुम्ह दुक्खडा, देसु घण सूखड़ा गुंदवउ वरसउला विदास, खारि कक्खुरहडि द्राख खज्जूरडी, दाडिम खोउ जे अवर नाम । कण मणि भूषणा, वच्छ गई दूषणा, धरि सिरे कड़करे बहु कन्न । पिहर तू कापड़ा, वारुप बायड़ा, जेन पिक्खंति सुमणेवि अन्ने | १८ | " इसके बाद देल्हकुमार का दीक्षा उत्सव विवाह की भाँति वर्णित है, 2 यथा : 'ते मेले विणु संघ घणा, कुकुं तडिय पढावि । सोहइ सासण जस तणउए, विसतरि जान वलावि । आपइ देसण पूगफल जानह तणइ प्रवेसि, सामहणी हिवगुरु करए, वय विवाह हरेसि । ' इसकी आदि और अन्त की पंक्तियाँ इस प्रकार है आदि 'भक्ति भरि भरियउ हरिस सिरि वरियउ, पणमिय संति करू सतिभाह, सारदा सामिणि हंसला गामिणी झाणिहि निय हिय करि साह |१| -. १. श्री मो० द० देसाई -- जै० गु० क० भाग ३ पृ० ६१५ २. श्री अ० च० नाहटा - 'परम्परा' पृ० ६१ ( राजस्थानी साहित्य का मध्यकाल ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy