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________________ ३४० मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास २ कक्कसूरि शिष्य-कोरंट गच्छीय कक्कसूरि के भी एक अज्ञात शिष्य ने सं० १५९६ वै० शु० १४ बुध को 'लीलावती चौपई' लिखी। इसके अन्त में अपनी गुरु परम्परा और रास का रचना काल कवि ने दिया है, यथा 'पनर छन्नवइ वैशाख मासि, शुदि चउदिसि मन धरिय उल्हासि, बुधवार अति निर्मलइ, चरित्र रचिऊ आणंदिघणई। कोरंट गच्छि कक्कसूरि राय, ते गुरुना हुं प्रणमी पाय, तास सीस रंगिइ इम कहइ, भणइ गुणइते सिव सुख लहइ ।। इसके पूर्व रचना का नाम कवि ने बताया है, यथा :'ओ लीलावइ तणु चरित्र, भणइ गुणइ ते थाइ पवित्र, मोटा चरित्र थकी उद्धरी, चुपइ कीधी हरषिइ करी।' चौपइ का प्रारम्भ इन पंक्तियों से हुआ है :'सरसति सामिणि समरु पाय, तु छइ कक्यिण केरी माय, तुही प्रसादि हुइ नवनिधि, सेवक पामइ सघली सिद्धि । मालव देस अतिहिंइ सुविशाल, वत्तइ भरहखंड विचालि, तिहाँ उज्जेणी पुरवर भलु, बीजानगर थकी गुणनिलु।' कमलधर्म-- आप पं० भुवनधर्म के शिष्य थे। आपने सं० १५६५ में ४७ पद्यों की रचना 'चतुर्विंशति जिनतीर्थ माला (गा० ४७) लिखी। यह चौबीसी के ढंग की रचना है जो चौबीस तीर्थंकरों की वंदना पर आधारित है। इसकी प्रारंभिक पंक्तियाँ प्राप्त नहीं हैं अतः भाषा और काव्य पक्ष का आकलन करने के लिए अन्तिम चार पद्य उद्ध त किये जा रहे हैं : 'नयरि कालप्पिय आवीया ए मा, पूज्या जिणवर देव, चंगि पथि चदेरीइ ए मा, आण्या कुशलय खेम। भुवनधर्म पंडित वरु ए मा, गुण मणि तणां भंडार, कमलधर्म तासु सीस वरइ मा, करइ विदेश विहार। रचनाकाल-संवत पनरह पांसठए मां हंस साल सूविचार, नियमति मानिइ वर्णव्या ए मा तीरथ सगला सार । तीरथमाला जे भणइ ए मा, आणिय उलगि अंग, ते नरनारी कवि भणइ ए मा, पामइ नव-नव रंग ।४७।' ५. श्री मो० द० देसाई-जौ० गु० क० भाग ३ पृ० ६२३ २. वही ___३. श्री अ० च • नाहटः-जै० म० गु० क० भाग ३ पृ० १४१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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