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मरु-गुर्जर जैन साहित्य
३३७ __ जैन भक्तों में नवकार मन्त्र का अतिशय माहात्म्य है और इस पर अनेक गीत, कथा ग्रन्थादि लिखे गये हैं।
कडुआ (कडुवो)-~आप कडुवा गच्छ के मूलपुरुष थे। आपने सं० १५६२ के आसपास अपना स्वतन्त्र गच्छ चलाया था, आपकी रचना 'लीलावती रास' या 'लीलावती सुमति विलास रास' भी इसी समय कभी. लिखी गई होगी। इसके आदि में लम्बोदर की वंदना की गई है, यथाः
'प्रथम लबोदर वीनबु, सूडा दुन्द गुहीर। सुद्धि बुद्धि आपइ निरमली गुणस्थानक गंभीर। देव महेशनइ कुलि हुआ, पारवतीना पूत्र,
तुम्ह समरिइ रिद्धि पामीइ, अणकेलव्या धर सूत्र ।' यह पूरा रास; दोहा और चौपाई छन्द में लिखा गया है । इसके पश्चात् कवि सारदा और आदिनाथ की वंदना करता है। इस रास में लीलावती का पुण्यचरित्र चित्रित है । भाषा के नमूने के रूप में इस रास की अन्तिम चार पंक्तियाँ प्रस्तुत की जा रही हैं :
'लीलावतीन चरित्र सांभलि, दुष दारिद्र तेहना टलि। जे नरनारी गासि रास, इणी परि पूरि मननी आस । करजोड़ी कडुऊ इमि भणी, दुष दालिद्र ते हेला दरि ।
जे नरनारी गासि रास, स्वामी पूरो तेहनी आस ।' इसकी भाषा प्रसादगुण सम्पन्न मरुगुर्जर है जिस पर गुर्जर का अधिक प्रभाव दिखाई पड़ता है। रचना में काव्यत्व पर कम, उपदेश पर ध्यान अधिक है।
कडुवा का जन्म नडुलाइ में नागर जाति के वणिक् वंश में हुआ था। आप १९ वर्ष की अवस्था में (सं० १५१४) अहमदाबाद चले आये और यहाँ हरिकीति से खूब शास्त्राध्ययन किया। तत्पश्चात् आपने श्रावक वेश में दूर दूर तक विहार-विचरण किया और लोगों को अपना संदेश दिया। धर्मसागर कृत पट्टावली के आधार पर आपने सं० १५६२ में अपना मत-प्रवर्तन प्रारम्भ किया था। ये मूर्तिपूजा की मान्यता करते थे किन्तु इनका विचार था कि वर्तमान में शास्त्र विहित आचारवान् कोई शुद्ध साधु नहीं है अतः दीक्षा में विश्वास नहीं करते थे। सं० १५६४ में धर्मोप्रदेश करते आपका. देहावसान हुआ। १. श्री मो० द० देसाई-जै० गु० क० भाग १ पृ० ११० और भाग ३ प० ५३८ २. वही
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