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मरु-गुर्जर जैन साहित्य इस प्रकार 'कथावत्रीसी' का रचनाकाल कवि ने इस प्रकार बताया है
पनर पंचासइ दीप दिने करिउं कथानक अह,
मुगध पण दूमइ कहिउं अछइ सोधइ उत्तम जेह ।'' इस प्रकार आप १६वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध के लेखक थे। मलयसुन्दरी रास में मलयसुन्दरी की कथा के माध्यम से कवि ने कर्म सिद्धान्त को स्पष्ट किया है। इसकी भाषा सरल एवं शैली सुबोध है । इनकी विस्तृत कथा कृति में चमत्कार कौतूहल के साथ कहीं-कहीं रसात्मक उक्तियाँ भी मिल जाती हैं।
'वाक्य प्रकाश औक्तिक' के लेखक उदयधर्म रत्नसिंह सूरि के शिष्य थे और निश्चय ही प्रस्तुत उदयधर्म से भिन्न थे । उपदेश माला कथानक के कर्ता पहले विनयचन्द्र समझे जाते थे, किन्तु बाद में निश्चय हुआ कि उसके कर्ता यही उदयधर्म है। इनका विवरण पहले दिया जा चुका है।
उदयभानु - (उदयभाण)-आप पूर्णिमा गच्छीय आ० विनयतिलक की परम्परा में सौभाग्य तिलक सूरि के शिष्य थे। आपने वि० सं० १५६५ (ज्येष्ठ सुदी) में 'विक्रम सेन रास-चुपइ' लिखा । विक्रम सेन उज्जैन के परमार राजा गर्दभसेन के पुत्र । वे बड़े पराक्रमी और साहसी थे। उन्होंने अगिया वैताल को वश में किया था। इनके अन्तःपुर में सैकड़ों रानियाँ थीं किन्तु एक बार स्वप्न में उसने चंपानगरी की निरुपम सुन्दरी राजकुमारी लीलावती को देखा और उसकी देश देशान्तर में खोज शुरू की। एक अवधूत ने उस का पता बताया और कहा कि वह पुरुष द्वेषिनी है। राजा अपना राजपाट मंत्री के ऊपर छोड़कर उसे ढूढ़ने निकल पड़ा। फिर अन्य कथा ग्रन्थों की तरह तमाम कथानक रूढ़ियों का वर्णन है । अनेक आपद-विपत्तियों को झेलकर उसने लीलावती को प्राप्त किया । भोग विलास से अंत में उपराम होकर दीक्षा लेता है और संयम साधना द्वारा मुक्ति प्राप्त किया । इसमें कथा और काव्य का सुन्दर समन्वय हुआ है। इसका प्रारम्भ इस प्रकार हुआ है :
'देवी सरसति देवी सरसति पाय पणमेवि,
शंभु शक्ति बिमनि धरी, करिस कवि नव नवई छंदि, १. श्री मो० द० देसाई-जै० गु० क० भाग १ पृ० ६२-६३ २. वही भाग ३ प० ४०१ और ४५७
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