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२३४ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास दोहे चौपाई का इसमें मुख्यरूप से प्रयोग किया गया है किन्तु बीच-बीच में ढाल, वस्तु, राग आदि का भी प्रयोग मिलता है। यह रचना मालवा देश के रतलाम निवासी श्रावक बेलराज के आग्रह पर लिखी गई। इसमें श्रीपाल की प्रसिद्ध कथा चौपई बन्ध में प्रस्तुत की गई है । इसके आदि की पंक्तियाँ इस प्रकार है :
'श्री अरिहंत जिणंदवर सिद्ध सूर उबझाय, पंचम पदि समरु सदा, सयल सुगुरुगुणराय । न्यान अनइ दरसण सहित चारित तपविधि सार,
हीयडा भीतर नवम पद, अ समरू सविचार । इसके भी अन्त के कवि ने अपनी गुरु परम्परा पर प्रकाश डाला है और अपने को सांडेर गच्छीय जसभद्र सूरि, शालिसूरि, सुमति सूरि, शान्ति सूरि का शिष्य बताया है । रचनाकाल का उल्लेख इस प्रकार हुआ है :
'वेलराज नइ आग्रह करी, कीधउ श्री नव कारक चिरी,
पनर चउसट्टइ वरस उल्लासि, सेअ अट्ठिमि दिण आसो मासि ।' इन उद्धरणों के आधार पर ये मरुगूर्जर के समर्थ कवि सिद्ध होते हैं। आपकी ईसर शिक्षा (गाथा २९) और और नंदिषेण (७६ गाथा) का भी उल्लेख मिलता है। किन्तु विवरण उद्धरण उपलब्ध नहीं है। आप अपभ्रंश के भी अच्छे ज्ञाता थे। आपने अपनी रचनाओं में नाना प्रकार के छन्द अलंकारों का प्रयोग तथा सरसस्थलों का मार्मिक वर्णन किया है ।
उदयधर्म-आप आगम गच्छीय मुनि सिंह सूरि की परम्परा में मतिसागर के शिष्य थे। आपने सं० १५०७ में 'वाक्य प्रकाश औक्तिक' लिखा। इस पर हर्षकुल ने संस्कृत में वृत्ति लिखी। आपने सं० १५४३ में मरुगुर्जर में 'मलयसुन्दरी रास' नामक १८०० छन्दों की विस्तृत रचना लिखी। आपकी दूसरी रचना 'कथाबत्तीसी सं० १५५७ है। आप 'उपदेशमाला कथानक' के लेखक उदयधर्म से भिन्न हैं क्योंकि वे १४वीं शताब्दी के लेखक थे। उनकी रचना 'प्रा० गुर्जर काव्य संग्रह में प्रकाशित है। मलय सुन्दरी रास के अन्त में कवि ने अपनी गुरु परम्परा और रचना काल का उल्लेख किया है, यथा :
'विरह वसिउचित्ति अंबातात, कुकर्म विषइ अवरची वात,
पनर त्रइतालइ तृतीया तिथि, आसो शुदि जेगुरु पक्ष अत्थि ।११९१। १. नाहटा-जै० म० गु० कवि पृ० २०९
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