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________________ ३२४ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास और इनकी भाषा के मूलरूप का निर्धारण बड़ा कठिन हो गया है। अतः भाषा का निर्णय न हो सकने के कारण उन्हें गुजराती का आद्यकवि मानने के मार्ग में बड़ी बाधा खड़ी होती है । दूसरे अनेक गैन कवियों की प्रामाणिक रचनायें इनसे पूर्व की प्राप्त हो चुकी हैं जिनकी सुरक्षित प्रतियों में उनकी मूलभाषा आज भी अविकल रूप में प्राप्त है। इनके आधार पर श्री केशव लाल ध्रुव और मणिभाई नमुभाई द्विवेदी प्रभृति विद्वान् जैन साहित्यकारों की रचनाओं को नरसी मेहता की रचनाओं से अधिक प्राचीन एवं प्रामाणिक मानते हैं। वे लोग जयशेखर कृत प्रबोध चिन्तामणि को गुजराती का सबसे प्राचीन ग्रन्थ मानते हैं । यह तो निर्विवाद है कि नरसी मेहता और मीराबाई की रचनाओं में बड़ा हेर-फेर हो गया है। भालण, केशव, भीम आदि भी इस काल में प्रसिद्ध जैनेतर मरुगुर्जर के कवि हुए हैं जिनके कारण आद्यकवि का निर्धारण नये सिरे से अपेक्षित है। इस शताब्दी में अनेक महत्वपूर्ण रचनायें की गईं। सं० १५०२ में नेमिचन्द्र भंडारी कृत षष्टिशतक पर तपोरत्न गुणरत्न ने टीका लिखी। सं० १५०३ में सोमधर्मगणि ने उपदेश सप्ततिका नामक ग्रंथ लिखा जिसमें अनेक तीर्थों और ऐतिहासिक व्यक्तियों के संदर्भ हैं । सं. १५०४ में रत्नशेखर सूरि के शिष्य सोमदेव ने कथामहोदधि नामक विस्तृत कथा ग्रन्थ गद्य-पद्य में लिखा। चारित्रवर्द्धन ने कालिदास के रघुवंश पर शिशुहितैषिणी नामक टीका लिखी। इस प्रकार संस्कृत, प्राकृत में अनेक ग्रन्थों पर टीकायें लिखी गई, कुछ मौलिक रचनायें भी की गई। अपभ्रंश में रत्नमन्दिर कृत उपदेश तरंगिणी, यशःकीर्ति कृत चन्दप्पहचरित्र, सिंहसेन उर्फ रइघु कृत महेसर चरित्र, श्रीपाल चरित्र आदि इस काल की अनेक महत्वपूर्ण रचनायें उपलब्ध हैं। जय मित्र हल कृत श्रेणिक चरित्र, देवनन्दि मुनि कृत रोहिणीविधान कथा, अज्ञात कवि कृत सुगन्ध दहमी कहा के अतिरिक्त १६ शताब्दी की तमाम महत्वपूर्ण जानकारी के लिए आवश्यक पुस्तक सोमचरित्र कृत गुरुगुण रत्नाकर (सं० १५४१), जिस की पहले चर्चा की गई है, इस शताब्दी की महत्वपूर्ण कृतियाँ हैं। इस कालावधि में अनेक कवियों ने मरुगुर्जर में उच्चकोटि का विशाल साहित्य सृजित किया। इनमें से लावष्यसमय आदि कई बड़े महत्वपूर्ण कवि हो गये हैं जिन्होंने न केवल विशाल साहित्य का सृजन किया अपितु अपने प्रभाव द्वारा मरुगुर्जर साहित्य को नई दिशा दी । इन कवियों का विवरण यथासंभव आगे प्रस्तुत किया जा रहा है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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